आजमगढ़: कड़ी सुरक्षा के बीच कर्बला पहुंचा ताजिया जुलूस

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रिपोर्ट-मोहम्मद तारिक
आज़मगढ़। मोर्हरम का दसवीं आज है। कड़ी सुरक्षा के बीच निर्धारित रूट से ताजिए कर्बला पर पहुंचें। वहां फातिहा के बाद ताजिए दफन किए जाएंगे। इसको लेकर पुलिस-प्रशासन अलर्ट मोड पर था। सभी ताजिया व उनके रूट पर पुलिस कर्मियों को तैनात किया गया था। नगर के चौक स्थित अज़ाखाना अबु तालिब से 2 बजे दिन मे मजलिस के बाद शबीह ताबूत अलम दुलदुल व ताज़िया का जुलूस निकला जो पुराना थाना, रौज़ा अली आशिकान, सिरादी का पूरा मेन रोड होते हुए खरेवां स्थित सदर इमामबाड़ा पहूँचा जहां पर ज़ियारते आशूरा पढ़ने के बाद समाप्त हुआ। संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा का अतिरिक्त इंतजाम किया गया था । सभी ताजिया को कर्बला तक पहुंचाने के लिए रूट पहले से ही निर्धारित था। उसी रूट से ताजिएदार ताजिया लेकर कर्बला तक पहुंचें। थाना क्षेत्राधिकारी फूलपूर गोपाल स्वरूप बाजपेयी ने बताया कि अपने पूर्व निर्धारित रूट से ताजिए कर्बला पहुंचे। इस दौरान शांति व्यवस्था बनाए रखने का पुख्ता इंतजाम है। शान्ति व्यवस्था की कमान उपजिलाधिकारी निजामाबाद रवि कुमार स्वयं सम्भाले हुए थे।
इस्लाम धर्म में यौमे आशुरा का दिन सौहार्द का संदेश दे देता है। मोहर्रम माह की दसवीं तारीख जिसे यौमे आशुरा कहा जाता है, यह इमाम हुसैन की (रअ) शहादत का दिवस है। ‘यौमे आशूरा’ सभी मुस्लिम समुदाय के लिए बेहद अहम् दिन माना जाता हैं। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार ‘आशूरा’ या मोहर्रम के दसवें दिन पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। इमाम हुसैन के साथ उनके कई अनुयायी कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के प्रवर्तक और पैगंबरा हजरत मोहम्मद (सल्लाहलाहु अलैहि व सल्लम) के नवासे थे। हजरत अली (रअ) अरबिस्तान (मक्का-मदीना वाला भू-भाग) के खलीफा यानी मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक राजनीतिक मुखिया थे।
उन्हें यह अधिकार उस दौर की अवाम ने दिया था अर्थात् हजरत अली को लोगों ने जनतांत्रिक तरीके से अपना मुखिया बनाया था। हजरत अली के स्वर्गवास के बाद लोगों की राय इमाम हुसैन को खलीफा बनाने की थी, लेकिन अली के बाद हजरते अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा किया। मुआविया के बाद उसके बेटे यजीद ने साजिश रचकर दहशत फैलाकर और बिकाऊ किस्म के लोगों को लालच देकर खिलाफत हथिया ली। यजीद दरअसल शातिर शख्स था जिसके दिमाग में प्रपंच और दिल में जहर भरा हुआ था। चूंकि यजीद जबर्दस्ती खलीफा बन बैठा था, इसलिए उसे हमेशा इमाम हुसैन से डर लगा रहता था। चालबाज और क्रूर तो यजीद पहले से ही था, सत्ता का नेतृत्व हथियाकर वह ओर खूंखार और अत्याचारी भी हो गया। यजीद दुर्दांत शासक साबित हुआ। अन्याय की आंधी और तबाही के तूफान उठाकर यजीद लोगों को सताता था। यजीद जानता था कि खिलाफत पर इमाम हुसैन का हक है क्योंकि लोगों ने ही इमाम हुसैन के पक्ष में राय दी थी। यजीद के आतंक की वजह से लोग चुप थे। इमाम हुसैन चूंकि इंसाफ के पैरोकार और इंसानियत के तरफदार थे, इसलिए उन्होंने यजीद की बैअत नहीं की। इमाम हुसैन ने हक और इंसाफ के लिए इंसानियत का परचम उठाकर यजीद से जंग करते हुए शहीद होना बेहतर समझा लेकिन यजीद जैसे बेईमान और भ्रष्ट शासक और बैअत करना मुनासिब नहीं समझा। यजीद के सिपाहियों ने इमाम हुसैन को चारों तरफ से घेर लिया था, नहर का पानी भी बंद कर दिया गया था, ताकि इमाम हुसैन और उनके साथी यहां तक कि महिलाएं और बच्चे भी अपनी प्यास नहीं बुझा सकें। तब प्यास को बर्दाश्त करते हुए इमाम हुसैन बड़ी बहादुरी से ईमान और इंसाफ के लिए यजीद की सेना से जंग लड़ते रहे। यजीद ने साजिश का सहारा लेकर प्यासे इमाम हुसैन को शहीद कर दिया। इमाम हुसैन और उनके छोटे बड़े साथियों ने दुश्मन की आंखों मे आंख डालकर कहा था ज़िल्लत की ज़िन्दगी से इज़्ज़त की मौत बेहतर है जुलूस मे अन्जुमन अज़ाए हुसैन निकामुद्दीनपुर अन्जुमन गुन्चये अब्बासिया कोरौली व अन्जुमन तन्ज़ीमे हुसैनी सरायमीर ने ज़ंजीर व छुरी से मातम करके करबला के शहीदों को खेराज अकीदत पेश किया आखिर मे कमेटी के अध्यक्ष सैय्यद कायम रज़ा ने सभी का अभार प्रकट किया।

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