सपा-आरएलडी के सफाया के लिए सीटों के तालमेल का फार्मूला भी तय
लखनऊ। अगले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा की तैयारियां तेज हो चुकी हैं। यूपी में भाजपा ने क्लीन स्वीप की रणनीति तैयार कर ली है। पिछले कई दिनों से भाजपा और जयंत चौधरी की आरएलडी के बीच गठबंधन की चर्चा चल रही थी। अब दोनों तरफ से इसे लेकर साफ इनकार कर दिया गया है। भाजपा को आरएलडी की तुलना में मायावती की बसपा ज्यादा मुफीद लग रही है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बसपा से गठबंधन और सीटों के तालमेल का फार्मूला भी तय कर लिया गया है। भाजपा नेताओं का मानना है कि आरएलडी से उतना फायदा नहीं होगा जितना बसपा से गठबंधन होने पर मिल सकता है। बसपा प्रमुख मायावती फिलहाल विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया और भाजपा के गठबंधन एनडीए दोनों से दूरी बनाकर चल रही हैं। पूर्वी यूपी में भाजपा ने सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर और दारा सिंह चौहान को अपने साथ लाकर पहले ही अपनी स्थिति मजूबत कर ली है। अब उसके निशाने पर पश्चिमी यूपी है। भाजपा नेताओं का मानना है कि आरएलडी के जाट वोट पहले से ही बीजेपी के साथ हैं। विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव में जाट वोट भाजपा को मिलते रहे हैं।
बसपा से गठबंधन कर भाजपा एक तीर से दो निशाने मारने की कोशिश में है। पिछले चुनाव में बसपा ने पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर जोरदार उपस्थिति दर्ज की थी। इसका पूरा फायाद बसपा और भाजपा दोनों को मिलेगा। इसके साथ ही बसपा से गठबंधन हुआ तो सपा के साथ आरएलडी का भी खेल बिगड़ जाएगा। बसपा के साथ सीटों का तालमेल भी भाजपा में तय कर लिया गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में बसपा को उसकी जीती हुई सीटें देने पर पार्टी नेता सहमत हैं। बसपा ने पिछले लोकसभा चुनाव में दस सीटें जीती थीं। अभी मायावती या बसपा की तरफ से इस बारे में हालांकि कोई बयान तो नहीं आया है लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि गठबंधन हो जाएगा। भाजपा नेताओं का मानना है कि बसपा के अकेले लड़ने पर विधानसभा चुनाव जैसे उसकी स्थिति हो सकती है। बसपा 2007 के विधानसभा चुनाव के बाद से ही लगातार हार का सामना कर रही है। 2012 में सपा ने बसपा को हराकर यूपी की सत्ता हथिया ली थी। 2014 के लोकसभी चुनाव में भाजपा की सुनामी चली और सपा ने पांच सीटें जीतीं लेकिन बसपा बुरी तरह हार गई। उसे 2017 में वापसी की उम्मीद थी लेकिन लगातार तीसरी हार के बाद उसने 2019 में सपा से गठबंधन किया। उसे दस लोकसभा सीटों पर जीत भी मिली।
2022 में अकेले उतरने का फैसला लिया था। इससे विधानसभा से उसका एक तरह से सफाया हो गया था। बसपा को केवल एक सीट पर जीत मिली थी। बलिया के रसड़ा से बसपा के उमाशंकर सिंह जीते थे। हालांकि यह जीत बसपा की कम और उमाशंकर की ज्यादा मानी जाती है। दस साल पहले तक सत्ता संभाल रही बसपा को विधानसभा में केवल एक सीट मिलने के साथ ही उसका वोट बैंक भी लगातार खिसकता रहा है।
बसपा इस समय अकेले नजर आ रही है। बसपा का बेस वोटबैंक यूपी में ही है। मायावती को पता है कि पिछले लोकसभा चुनाव में मिली दस सीटों पर जीत 2024 में तभी बरकरार रह सकती है जब किसी से गठबंधन किया जाए। बसपा के अकेले उतरने पर विधानसभा और निकाय चुनाव जैसे हालत हो सकती है। बसपा की इसी मुश्किलों को देखते हुए भाजपा की तरफ से गठबंधन का पासा फेंका गया है। मायावती लगातार मुस्लिमों को साधने के लिए तरह तरह के प्रयोग करती रही हैं। इसके बाद भी उन्हें मुस्लिमों का साथ उस तरह नहीं मिल रहा जैसे सपा को मिलता रहा है। वहीं इस बारे में सपा सांसद एसटी हसन का कहना है कि मायावती उनके साथ जा रही हैं तो उन्हें पता है कि मुस्लिम वोट बसपा को नहीं मिल रहा है। वह पहले भी अपने वोट शिफ्ट करती रही हैं। पिछले कई चुनावों से लगातार बीएसपी को हार का सामना करना पड़ रहा है। विधानसभा में तो सफाया हो ही गया है। लोकसभा में दस सीटें सपा से गठबंधन के कारण मिली थीं। इस बार लोकसभा में भी सफाया तय है।