आजमगढ़: जिस दिन हुआ जन्म उसी दिन पाया शहीद का दर्जा

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आजमगढ़ के रामसमुझ ने छुड़ाए थे दुश्मनों के छक्के
आजमगढ़। कारगिल युद्ध मई-जुलाई 1999 के बीच जम्मू और कश्मीर के कारगिल जिले की नियंत्रण रेखा जिसे एलओसी भी कहते हैं, पर लड़ा गया था। इस युद्ध में रामसमुझ ने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे। तहसील क्षेत्र के नत्थूपुर गांव निवासी शहीद रामसमुझ यादव ने अपने अदम्य साहस से बहादुरी की जो मिसाल कायम की उसे लांघना हर किसी के वश की बात नहीं है। 30 अगस्त के जिस दिन उन्होंने इस दुनिया में कदम रखा। उसी 30 अगस्त के दिन उन्होंने देश की सीमा की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी। शहीद रामसमुझ यादव का जन्म 30 अगस्त 1977 को सगड़ी तहसील क्षेत्र के नत्थूपुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राजनाथ यादव और माता का नाम प्रतापी देवी है। आर्थिक रूप से पिछड़े राजनाथ यादव के परिवार में जन्म लेने वाले रामसमुझ सबसे बड़े बेटे थे। छोटे भाई प्रमोद यादव व छोटी बहन मीना दोनों भाई बहनों की जिम्मेदारी उन पर थी। रामसमुझ यादव ने मेहनत मजदूरी कर अपनी पढ़ाई पूरी की और देश सेवा के जज्बे में आर्मी ज्वाइन किया। सन 1997 में वाराणसी आर्मी में भर्ती हुए। इनकी जॉइनिंग 13 कुमाऊं रेजीमेंट में हुई तथा पहली पोस्टिंग सियाचिन ग्लेशियर में की गई।
तीन महीने बाद सियाचिन ग्लेशियर से नीचे आने के बाद 1999 में कारगिल जंग शुरू हो गई जहां इनकी पलटन को कारगिल युद्ध में भेज दिया गया। यहां उन्होंने अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों से कड़ा मुकाबला किया और जंग में लड़ते हुए 30 अगस्त 1999 को शहीद हो गए। इसे दुर्भाग्य कहें या सौभाग्य जिस तारीख को जन्म हुआ उसी तारीख 30 अगस्त को मात्र 22 वर्ष की उम्र में शहीद हुए। उनके शहीद होने के बाद उनके गांव में सरकार की ओर से शहीद पार्क का निर्माण कराया गया, जहां शहीद रामसमुझ यादव की भव्य आदमकद प्रतिमा स्थापित है। प्रतिवर्ष 30 अगस्त को यहां पर उनका शहीद दिवस धूमधाम से मनाया जाता है।

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