आजमगढ़ : डाक्टरों की टीम व ममता की छांव ने दिया नवजात को नया जीवन

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800 ग्राम के नवजात ने 163 दिनों में जीती जिंदगी की जंग
यह हमारी मेडिकल टीम की मेहनत और समर्पण का परिणाम-डा० विनय कुमार सिंह
आजमगढ़। महापंडित राहुल सांकृत्यायन जिला महिला चिकित्सालय में एक ऐसी घटना सामने आई है, जो चिकित्सा क्षेत्र में एक चमत्कार से कम नहीं है। 20 दिसंबर 2024 को अम्बेडकरनगर जिले के जहांगीरगंज क्षेत्र के दुराजपुर निवासी मनोरमा, पत्नी कुंवर आलोक, को प्रसव के लिए जिला महिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया था। मनोरमा ने उसी दिन एक सात माह के समय पूर्व जन्मे (प्रीमैच्योर) बच्चे को जन्म दिया, जिसका वजन मात्र 800 ग्राम था। नवजात की नाजुक हालत को देखते हुए डॉक्टरों की टीम ने गहन विचार-विमर्श के बाद बच्चे को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के अस्पताल में रेफर करने का निर्णय लिया।
परिजन तत्काल बच्चे को लेकर बीएचयू पहुंचे, लेकिन वहां बेड उपलब्ध न होने के कारण बच्चे को भर्ती नहीं किया जा सका। बीएचयू के डॉक्टरों ने परिजनों को सलाह दी कि वे बच्चे को कबीरचौरा अस्पताल ले जाएं। हालांकि, परिजनों ने कबीरचौरा जाने के बजाय बच्चे को वापस आजमगढ़ के जिला महिला चिकित्सालय लाने का फैसला किया। वहां उन्होंने डॉक्टरों से बच्चे को भर्ती करने की गुहार लगाई। परिजनों की इस अपील को देखते हुए अस्पताल के डॉक्टरों ने बच्चे को गंभीर नवजात चिकित्सा कक्ष (एसएनसीयू) में भर्ती कर लिया।
भर्ती के बाद बच्चे की हालत और बिगड़ गई। करीब 20 दिनों के इलाज के दौरान बच्चे को गंभीर बीमारी ने जकड़ लिया, जिसके कारण उसका वजन और कम होकर 500 ग्राम रह गया। इस स्थिति में न केवल परिजनों की उम्मीदें टूटने लगीं, बल्कि डॉक्टरों के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती थी। डॉक्टरों और परिजनों को लगने लगा था कि बच्चे का बचना अब मुश्किल है। लेकिन जिला महिला चिकित्सालय की मेडिकल टीम ने हार नहीं मानी और बच्चे के इलाज में दिन-रात जुटे रहे।
इस दौरान बच्चे की मां मनोरमा ने भी हिम्मत नहीं हारी और अपने बच्चे के साथ हर पल मौजूद रही। बच्चे को मां का दूध उपलब्ध कराया गया, जो मेडिकल भाषा में कंगारू मदर केयर (केएमसी) के रूप में जाना जाता है। इस विधि के तहत नवजात को मां की गोद में रखा जाता है, जिससे बच्चे को गर्माहट, सुरक्षा और पोषण मिलता है। यह तकनीक समय पूर्व जन्मे बच्चों के लिए बेहद कारगर मानी जाती है। मां की ममता और डॉक्टरों की मेहनत का नतीजा यह हुआ कि धीरे-धीरे बच्चे की हालत में सुधार होने लगा।
लगातार इलाज और देखभाल के परिणामस्वरूप, करीब 163 दिनों बाद बच्चे का वजन बढ़कर 2.440 किलोग्राम हो गया। आज यह बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और उसकी मुस्कान ने न केवल परिजनों, बल्कि जिला महिला चिकित्सालय की पूरी मेडिकल टीम को खुशी से भर दिया। इस चमत्कारी रिकवरी में सबसे बड़ी भूमिका गंभीर नवजात चिकित्सा कक्ष (एसएनसीयू) की टीम ने निभाई।
जिला महिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. विनय कुमार सिंह ने इस उपलब्धि पर गंभीर नवजात चिकित्सा कक्ष के प्रभारी डॉ. शैलेष सुमन और उनकी पूरी टीम को बधाई दी। इस टीम में अनूप जायसवाल, सुमित कुमार, नमिता चन्द्रा और पंकज यादव जैसे कर्मठ स्वास्थ्यकर्मियों का विशेष योगदान रहा। डॉ. विनय कुमार सिंह ने कहा, यह हमारी मेडिकल टीम की मेहनत और समर्पण का परिणाम है कि इतनी नाजुक स्थिति में भी बच्चे को बचाया जा सका। केएमसी जैसी तकनीकों और परिजनों के सहयोग से हमने एक असंभव से दिखने वाले लक्ष्य को हासिल किया।

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