इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ रही भाजपा

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राजभर-निषाद और अनुप्रिया ने विपक्षी दलों के सुर में मिलाया सुर


लखनऊ। बिहार में जातीय गणना की रिपोर्ट आने के साथ ही यूपी में भी इसकी मांग फिर से मुखर होने लगी है। विपक्षी पार्टियों कांग्रेस-सपा और बसपा पहले से ही जातीय गणना कराने की मांग करती रही हैं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने तो विधानसभा में भी अपनी मांग दोहराई है। इस मांग को योगी सरकार लगातार न सिर्फ नजरंदाज करती रही है बल्कि सीधा विरोध भी किया है। सोमवार को भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने बिहार में हुई जातीय गणना की रिपोर्ट को ही एक तरह से खारिज करते हुए कहा कि यह किस नियम के आधार पर कराया, यह तो अध्ययन के बाद ही पता चल सकेगा। वहीं, भाजपा की सहयोगी दल सुभासपा, निषाद पार्टी और अनुप्रिया पटेल की अपना दल जातीय गणना कराने की पक्षधर हैं। अनुप्रिया पटेल ने तो फिर से दोहराया है कि उनकी पार्टी जातीय गणना कराने की लगातार मांग करती रही है। ऐसे में इस बात की आशंका बढ़ गई है कि जातीय गणना के मामले में बीजेपी अलग-थलग पड़ सकती है। एनडीए की सहयोगी और केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से जातीय गणना की वकालत करती रही है। कहा कि हमने संसद में अपनी पार्टी का पक्ष रखा है। हम जातीय गणना के पक्षधर हैं और जातीय गणना समय की मांग है। अपना दल ने संसद के अंदर निरंतर पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय की मांग भी उठाई है। सड़क से संसद तक हम लगातार मांग करते रहे हैं आगे भी करते रहेंगे। अनुप्रिया की तरह एनडीए की सहयोगी सुभासपा के ओपी राजभर और निषाद पार्टी के संजय निषाद भी जातीय गणना की मांग कर चुके हैं। ओमप्रकाश राजभर का कहना है कि हर दस साल में देश में जातिवार गणना होनी चाहिए और जो पीछे हैं उनको लाभ देना चाहिए। ये देश और प्रदेश के राजनेता केवल गरीब जनता को 16 दुनी 8 का पाठ पढ़ा रहे हैं। कहा कि आजादी के 75 साल में बाबा साहेब डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान लिखा और ये व्यवस्था दी कि हर 10 साल बाद एक जातिगत गणना हो। कौन सी जाति को कितना हिस्सा मिला अगर नहीं मिला तो उसकी व्यवस्था हर 10 साल में मिले। 1931 में जातिवार जनगणना हुई है। जातिवार गणना करवाना, एक समान अनिवार्य शिक्षा, रोजगार परक शिक्षा मिलनी चाहिए। निषाद पार्टी के अध्य संजय निषाद भी जातीय गणना की मांग कर चुके हैं। योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री संजय निषाद का कहना है कि धार्मिक आधार पर नहीं, लेकिन जातीय गणना होनी चाहिए। इससे पता तो चल सकेगा कि किस जाति के कितने लोग हैं। हमारी सरकार पिछली सरकारों को यह जवाब भी दे सके कि जो उन सरकारों ने वर्षों में जातियों का भला नहीं किया हमारी सरकार ने छह साल में ही वह करके दिखा दिया है। वहीं, यूपी में सपा की सहयोगी आरएलडी ने भी जातीय गणना की मांग की है। बिहार में रिपोर्ट आते ही आरएलडी ने मांग की कि यहां भी उसी तरह से गणना की जाए। अलग अलग जातियों की कितनी संख्या है यह पता चलनी चाहिए। रालोद भी इंडिया गठबंधन में शामिल है। रालोद के प्रदेश अध्यक्ष रामाशीष राय ने कहा कि यूपी में सरकार की योजनाओं में किस जाति की कितनी भागीदारी है यह पता चलना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम मांग करते हैं कि यूपी में बिहार की तरह तत्काल जातीय गणना होनी चाहिए। कांग्रेस ने यूपी में इसके पक्ष में आवाज उठानी भी शुरू कर दी थी। राहुल गांधी द्वारा खुलकर जातीय जनगणना का समर्थन कर दिए जाने के बाद तो यह अभियान ही बन गया है। पार्टी अपने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं के जरिए इस मुहिम को अब और धार देगी।
बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने पहले ही यूपी में जातीय जनगणना कराने की मांग कर चुकी हैं। मायावती ने कहा था कि ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही आंकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जातीय जनगणना को पटना हाईकोर्ट द्वारा पूर्णत वैध ठहराए जाने के बाद अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहां यह जरूरी प्रक्रिया कब, इतना ही नहीं बसपा प्रमुख ने यह भी कहा कि देश के कई राज्य में जातीय जनगणना के बाद यूपी में भी इसे कराने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है, किन्तु वर्तमान बीजेपी सरकार भी इसके लिए तैयार नहीं लगती है, यह अति-चिन्तनीय, जबकि बीएसपी की मांग केवल यूपी में नहीं बल्कि केन्द्र को राष्ट्रीय स्तर पर भी जातीय जनगणना करानी चाहिए।

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