मुलायम सिंह यादव के खिलाफ भी चुनाव लड़ चुके हैं चौधरी भूपेन्द्र सिंह

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नोएडा। यूपी कैबिनेट कैबिनेट में पंचायती राज मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह को भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई का अध्यक्ष बनाया गया है। उन्हें अचानक से दिल्ली बुलाए जाने के बाद से उनके भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावनाएं काफी प्रबल हो गई थीं। भूपेंद्र चौधरी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। उन्हें भगवा पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के पीछे आगामी लोकसभा चुनाव में यूपी खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मतदाताओं को साधना भी प्रमुख कारण है। उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाकर किसान आंदोलन के कारण भाजपा से रूठे जाट मतदाताओं को मनाने का प्रयास किया गया है। भाजपा में एक व्यक्ति एक पद का सिद्धांत है लिहाजा चौधरी को अब मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ेगा। पहली बार किसी जाट नेता को प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंपी गई है। भूपेंद्र चौधरी का जन्म 1968 में मुरादाबाद के महेंदरी सिकंदरपुर में हुआ था। वे भारतीय जनता पार्टी से लगभग 33 सालों से जुड़े हैं। उन्होंने राजनीति अपने छात्र जीवन से ही शुरू कर दी थी। इस सियासी बिसात में संगठन का लंबा तजुर्बा, जाट बिरादरी और राजनीतिक अनुभव प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए कैबिनेट मंत्री चौधरी भूपेंद्र सिंह के पक्ष में रहे। भूपेंद्र चौधरी वर्ष 2007 से 2012 तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय मंत्री रहे। वहीं, 2011-2018 तक लगातार तीन बार पश्चिमी यूपी के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं। चौधरी भूपेंद्र सिंह ने वर्ष 1999 में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था। पार्टी ने उन्हें संभल से लोकसभा प्रत्याशी बनाया था। हालांकि वह चुनाव हार गए। पुराने स्वयंसेवक भूपेंद्र चौधरी 2016 में पहली बार विधान परिषद सदस्य चुने गए थे। 2017 में प्रदेश मे भाजपा की सरकार बनने पर उन्हें पंचायती राज विभाग का राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया था। 2019 में मन्त्रिमण्डल फेरबदल में चौधरी को कैबिनेट मंत्री बनाया गया। योगी आदित्यनाथ सरकार 2.0 में चौधरी को पुनः कैबिनेट मंत्री बनाते हुए पंचायती राज विभाग की जिम्मेवारी दी गई। चौधरी हालही में पुनः विधान परिषद सदस्य निर्वाचित हुए हैं। चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश की है। पार्टी नेतृत्व का मानना है कि चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त करने से लोकसभा चुनाव में सपा और रालोद गठबंधन से संभावित नुकसान को कम किया जा सकेगा। वहीं लगातार दूसरी बार पिछड़े वर्ग के नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से पश्चिम से पूर्वांचल तक ओबीसी वोट बैंक में अच्छा संदेश जाएगा।

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