बाहुबली पूर्व विधायक का गिरफ्तारी वारंट गायब करती रही पुलिस

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थाने से एफआईआर की फाइल भी गायब
श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ गैंगस्टर के केस में नामजद पूर्व विधायक के खिलाफ 17 साल से जारी होता रहा गैरजमानती वारंट
गोरखपुर। प्रदेश सरकार जहां माफियाओं पर शिकंजा कसने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है वहीं पुलिस गैर जमानती वारंट तक हजम कर जा रही है। बाहुबली पूर्व विधायक राजन तिवारी के मामले में ऐसा ही चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। कुख्यात श्रीप्रकाश शुक्ला के साथ गैंगस्टर के केस में नामजद राजन तिवारी के खिलाफ 17 साल से गैरजमानती वारंट जारी होता रहा लेकिन कैंट पुलिस गिरफ्तारी तो दूर, वारंट ही गायब करती रही। 100 से ज्यादा वारंट-समन जारी हुए कोर्ट से पर पुलिस ने एक भी पहुंचाया नहीं। 17 साल से चल रहा था पूर्व विधायक राजन तिवारी के मुकदमे में पुलिस का खेल।
यूपी के टॉप 61 माफियाओं की सूची में बाहुबली राजन तिवारी का नाम शामिल होने के बाद मुकदमों की पड़ताल शुरू हुई तो पुलिस का खेल सामने आ गया। यही नहीं जिस कैंट थाने में यह केस दर्ज हुआ था, वहां से फाइल भी गायब हो गई। अफसरों के जवाब मांगने पर कैंट पुलिस अपने यहां दर्ज सभी मुकदमों में राजन तिवारी को क्लीनचिट देती रही। खेल खुलने के बाद अफसरों ने सख्ती की तब गैर जमानती वारंट के आधार पर पुलिस ने राजन की तलाश शुरू की है।
दरअसल, 15 मई 1998 को कैंट पुलिस ने शिव प्रकाश उर्फ श्रीप्रकाश शुक्ला, अनुज सिंह, राजन उर्फ राजेन्द्र तिवारी और आनंद पाण्डेय सहित चार लोगों पर गैंगस्टर एक्ट में कार्रवाई की थी। इसमें श्रीप्रकाश शुक्ला को गैंग लीडर तो अन्य को सक्रिय सदस्य बनाया गया था। इस मामले में राजन तिवारी के हाजिर न होने पर 14 दिसम्बर 2005 को कोर्ट ने गैर जमानती वारंट जारी किया। तब से सौ से ज्यादा वारंट जारी हुए पर कैंट पुलिस के रिकार्ड में कभी पहुंचे ही नहीं। रिकार्ड में चढ़ाए बिना ही वारंट गायब करने का खेल 2022 तक चलता रहा।
प्रदेश की माफिया सूची में नाम आने के बाद शुरू हुई जांच
योगी सरकार 2.0 में शिकंजा कसने के लिए प्रदेश के सभी जिलों से माफिया और बड़े बदमाशों की सूची बनी तो इसमें पूर्व के मुकदमों के आधार पर गोरखपुर के रहने वाले पूर्व विधायक राजन तिवारी का नाम भी शामिल किया गया। राजन के मुकदमों का ब्योरा जुटाने और अब तक हुई कार्रवाई के आंकलन में पुलिस जुटी तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। पता चला कि गोरखपुर की कैंट पुलिस अपने रिकार्ड में पूर्व विधायक को क्लीनचिट देती रही। यह बताया जाता रहा है कि राजन की अब आपराधिक गतिविधियों में सक्रियता नहीं है वहीं पूर्व में दर्ज मुकदमों में दोष मुक्त का फैसला भी आ गया है।
एडीजी ने कराई छानबीन तो खुला पुलिस का खेल
एडीजी अखिल कुमार ने जब इसकी छानबीन कराई तो न सिर्फ राजन तिवारी के मुकदमे की जानकारी हुई बल्कि गैंगस्टर के मुकदमे में जारी गैर जमानती वारंट का भी पता चला। इस मामले में जब अफसरों ने कैंट पुलिस से पूछा तो पता चला कि उसे किसी वारंट की जानकारी ही नहीं है। इसके बाद पूरा खेल पकड़ में आया।
12 जुलाई 2022 को गैंगस्टर के मुकदमे में तारीख थी। इस दौरान पूर्व विधायक राजन तिवारी के अधिवक्ता ने गैर जमानती वारंट के स्थगन की मांग की है। यह बताया गया है कि राजन तिवारी के 1999 से 2014 तक जेल में रहने के दौरान जारी गैर जमानती वारंट की जानकारी नहीं हो पाई। यही नहीं जिन दो मुकदमों को गैंगस्टर के लिए आधार बनाया गया है उसमें से एक में दोष मुक्त होने तथा एक का विचारण चलने की भी कोर्ट को जानकारी दी गई है। इस मामले में अभी कोर्ट की तरफ से कोई निर्णय नहीं आया है।
वर्ष 1996 में कैंट थाने में हत्या के दो मुकदमों में श्री प्रकाश शुक्ला के साथ राजन तिवारी को भी अभियुक्त बनाया गया था। इन मुकदमों में एक में शास्त्री चौक पर चंद्रलोक लॉज के सामने वीरेन्द्र शाही पर हमला हुआ था जिसमें उनका गनर मारा गया था। वहीं दूसरा मुकदमा ठेकेदार विवेक सिंह की हत्या से जुड़ा था। पार्क रोड पर वन विभाग के आफिस के सामने विवेक सिंह की हत्या हुई थी। यह हत्या रेलवे के ठेके को लेकर हुई थी। हत्या से पहले रेलवे के बीजी आफिस पर टेंडर लेने से विवेक सिंह को रोका गया था।
जब कोई अभियुक्त अपने मुकदमे के दौरान तारीख पर हाजिर नहीं होता है तब कोर्ट की तरफ से समन जारी किया जाता है। आरोपित के घर पुलिस समन तामिला कराती है। उसके बाद भी आरोपित तारीख पर नहीं आता है तो बीडब्ल्यू यानी जमानती वारंट जारी किया जाता है। इसके बाद भी हाजिर नहीं होने पर गैर जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) जारी होता है जिसमें पुलिस को गिरफ्तार कर आरोपित को कोर्ट में पेश करना होता है। राजन के मामले में समन और बीडब्ल्यू में पुलिस की तरफ से उसके पते पर न मिलने की रिपोर्ट दी गई। उसके बाद से ही एनबीडब्ल्यू जारी है। इसे गायब कर दिए जाने से एनबीडब्ल्यू के बाद आगे की कार्रवाई नहीं बढ़ पाई

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