डॉक्टर की मौत के बाद हुआ उसका तबादला

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प्रयागराज। तेरहवीं के बाद मोती लाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय में सर्जन के पद पर डॉ. दीपेंद्र सिंह की तैनाती पर परिवार ही नहीं, प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ (पीएमएस) भी असहज है। संघ ने शनिवार को पीएमएस की ओर से इस मसले पर अपर मुख्य सचिव (चिकित्सा, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण) को पत्र लिखा। इसमें कहा गया है कि इस तबादला आदेश से विभाग की छवि धूमिल हुई है। साथ ही डॉ. दीपेंद्र के परिवार को और भी गहरा आघात लगा है। ऐसे में इस लापरवाही की उच्चस्तरीय जांच कराई जानी चाहिए। इस बीच शासन ने आनन-फानन में शुद्धि पत्र जारी करते हुए तबादला आदेश को निरस्त कर दिया है।
सर्जन रहे डॉ. दीपेंद्र सिंह की तेरहवीं के एक दिन बाद डॉक्टर्स डे पर जारी किए गए इस तबादला आदेश को प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ की जिला इकाई ने घोर लापरवाही और उदासीनता का परिचायक माना है। अपर मुख्य सचिव को भेजे गए पत्र में मरणोपरांत जारी गए आदेश की संघ की ओर से निंदा भी की गई है। साथ ही इस घटनाक्रम की जांच कराते हुए उनके समस्त देयों के तत्काल भुगतान के लिए शासन से आग्रह किया है।
एसीएस को भेजे पत्र में कहा गया है कि डॉ. दीपेंद्र के तबादले के लिए संघ की ओर से भी पहल की गई थी और इसके लिए कई पत्र लिखे गए थे। संघ की ओर से कहा गया है कि लगातार छह वर्ष तक परिवार से दूर रहते हुए अच्छा खानपान न मिलने के कारण वह लिवर की बीमारी से संक्रमित हो गए थे। संघ का कहना है कि उन्होंने अपने स्थानांतरण के लिए निदेशालय से लेकर स्वास्थ्य भवन तक सैकड़ों चक्कर काटा। यदि उनकी फाइल देख ली जाए तो पिछले पांच साल में उनके स्थानांतरण के लिए 20 से अधिक पत्र पड़े होंगे।
लेकिन, तमाम प्रयास के बाद भी उनका स्थानांतरण चित्रकूट से नहीं किया गया। दीपेंद्र के स्वास्थ्य को देखते हुए उनके तबादले के लिए प्रांतीय चिकित्सा सेवा संघ की ओर से भी शासन को पत्र भेजा गया था, लेकिन असफलता हाथ लगी। लेकिन मरणोपरांत तेरहवीं के बाद मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल में उनका तबादला कर परिजनों को एक और आघात पहुंचाया गया। इस मामले की जांच कराकर दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए।

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