आजमगढ़ : पत्नी के हाथ में पूजा की थाली, होटल पहुंचे पति और जेब हुई खाली

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फिल्मी त्यौहार पर पतियों की पीड़ा हुई उजागर
रिपोर्ट-वेद प्रकाश सिंह 'लल्ला'
आजमगढ़। जिले में रविवार को पति कि दिर्घायु की कामनावश सुहागिन महिलाओं द्वारा करवा चौथ का व्रत श्रद्धा और भावपूर्वक धारण किया। पूरे दिन निर्जल व्रत रहने के बाद सोलहो श्रृंगार करके उदीयमान चंद्रदेव को अर्घ्य दिया। दर्शनोंपरांत चलनी में पतिदेव का दीदार कर सुहागिनों ने इसी तरह व्रत का पारण तो किया लेकिन उसके बाद निढाल हो गईं। बिस्तर पर बेसुध पड़ी पत्नी की हालत देख पतिदेव भी असहाय हुई अर्धांगिनी की सेवा सुश्रुषा में लग गए। कारण की चरण छूकर उसने प्रियतम से आशीर्वाद जो प्राप्त किया था। व्रतधारी पत्नी की पीड़ा से परेशान पतिदेव घर में बनाए गए व्यंजनों को भूलकर घर से होटल की ओर रुख कर लिए। शहर के सिविल लाइन क्षेत्र में स्थित होटलों पर पतियों की भारी भीड़ देख एक बार तो एहसास हुआ कि रविवार को आयोजित पीसीएस परीक्षा में शामिल होने वाले प्रतिभागियों की भीड़ है। यह भ्रम भी दूर हो गया जब हम हकीकत जानने के लिए उस स्थान पर पहुंचे। होटल वाले ने हमें देख जवाब दिया कि साहब यह लोग आपसे ज्यादा परेशान हैं, इनकी सेवा के बाद आपका नंबर। उसकी बात सुन हम भी तैश में आ गए कि हम तो रोज के कस्टमर हैं लेकिन उसने हाथ जोड़ लिया। उसका जवाब सुन मैं भी चुप रहने में ही अपनी भलाई समझा। होटल वाले के साथ वहां हमारी तरह भोजन की प्रतीक्षा करने वाले मंगला चाचा ने भी हमें निरुत्तर कर दिया। दोनों का यह कहना कि हमने तो अपनी मां और दादी के जमाने में पति के लिए तीज और पुत्र के लिए जिउतिया पर्व जाना था। आधुनिक जमाने में फिल्मी त्यौहार को आत्मसात करने वाले नई पीढ़ी के बारे में क्या कहें। उन्होंने बात साफ किया कि यह तो पंजाबियों का त्यौहार था लेकिन फिल्मों में इस दृश्य को हमारी बहू-बेटियों ने भी स्वीकार कर लिया। जैसे बिहार के डाला छठ जैसे महत्वपूर्ण पर्व को भी समाज ने अंगीकार कर लिया है। इसी बीच भोजन के लिए होटल पर आए एक परिचित के चेहरे के हावभाव को पढ़ते हुए हमने कुशलक्षेम पूछा तो उनका जवाब सुन तो मैं हैरान हो गया। महाशय ने कहा कि क्या करूं महंगी साड़ी और जेवर दिलाने के बाद पत्नी को खुश करने के लिए यह सब करना पड़ रहा है। चलनी में अपना चेहरा दिखाने के बाद पत्नी की हालत भोजन परोसने की भी नहीं है। ऐसे में चावल के आटे से बने फारा को खाने से बेहतर है की होटल से कुछ सुस्वादु आइटम लेकर घर चला जाए। पत्नी भी मुंह जुठार लेगी और मेरा भी काम चल जाएगा। हां इतना जरूर है कि इस त्यौहार के चलते मेरी जेब खाली हो गई। इस महीने की मिली पगार से तो यह पर्व किसी तरह मना लिया लेकिन आगे आने वाली दिवाली में तो दिवाला निकल जाएगा। शायद कर्ज लेकर घर में धन की देवी लक्ष्मी और विघ्न विनाशक गणपति की पूजा करनी पड़े, इससे धर्मपत्नी से क्या मतलब। उनकी पीड़ा सुन अनायास मेरे भी मुंह से निकल गया 'लगे रहो भाई'।

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