आजमगढ़: डिजिटल युग की भेंट चढ़ गया पारंपरिक खेलों का त्यौहार नागपंचमी

Youth India Times
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न पेड़ों पर लगे झूले, न मेहंदी संग कजरी गीतों की सुनी गई धुन
पारंपरिक खेलों से हुआ युवाओं का मोह भंग
-वेद प्रकाश सिंह ‘लल्ला’
आजमगढ़। देश के महत्वपूर्ण त्योहारों में शामिल नागपंचमी का पर्व जब युवाओं की टोली इस दिन होने वाले पारंपरिक खेलों के प्रति कई दिन पूर्व अभ्यास में जुट जाती थी। गांव के बुजुर्गों की देखरेख में आयोजित होने वाली प्रतियोगिता में युवा वर्ग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेता था। प्रतियोगिता जीतने वालों को मुंह मीठा कराने के बाद मिलने वाला बुजुर्गों का आशीष ही विजेता को पदक के सामान नजर आता था। मोबाइल युग में बुरी तरह उलझ चुके युवा वर्ग का अब इन खेलों के प्रति मोहभंग दिखने लगा है। हम युवा वर्ग को ही क्यों दोष दें। आधुनिक परिवेश में रम चुके लोग भी इसके लिए कम कसूरवार नहीं। अब तो सावन मास में पड़ने वाले इस प्रमुख त्योहार के अवसर पर न पेड़ों पर पड़ने वाले झूले दिखे और न ही हाथों में मेहंदी रचा कर झूले का आनंद लेते वक्त कजरी गीत गाकर लोगों का मन मोह लेने वाली महिलाओं की टोली।
पाश्चात्य संस्कृति का लबादा ओढ़ चुके युवा वर्ग का खेलों के प्रति उत्साह का कम होना चिंतन का विषय है। नाग पंचमी के दिन इस पर्व को मनाने के लिए गांव के युवा और बच्चे कई दिन पहले से ही कबड्डी, कुश्ती, ऊंची कूद, लंबी कूद जैसे तमाम पारंपरिक खेलों के अभ्यास में जुट जाते थे। नाग पंचमी के दिन बड़े-बुजुर्गों की देखरेख में आयोजित प्रतियोगिता में शामिल खिलाड़ियों का उत्साह देखते बनता था। प्रोत्साहन के रूप में दर्शकों की ताली और बुजुर्गों का आशीर्वाद ही उनकी अनमोल थाती हुआ करती थी। मोबाइल युग ने यह सब छीन लिया। शनिवार को जनपद में नागपंचमी का त्यौहार श्रद्धापूर्वक मनाया गया लेकिन इस दिन नगर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में होने वाले खेलों के आयोजन की कमी खल रही थी। अब तो इस अवसर पर झूला झूलने के लिए लोगों का उत्साह भी कहीं नजर नहीं आया। युवा वर्ग में खेलों के प्रोत्साहन हेतु प्रबुद्धजन को सचेत होना होगा और इसके लिए सरकार को भी पहल करनी होगी ताकि गांव में होने वाले पारंपरिक खेलों के प्रति युवाओं में ऊर्जा बनी रहे।

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