विपक्षी प्रत्याशियों के साथ पत्रकारों की भी हुई जमकर पिटाई

Youth India Times
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कन्नौज। उत्तर प्रदेश में ब्लॉक प्रमुख चुनाव के दौरान जो कुछ देखा गया वह लोकतंत्र के लिए सही मायनो में घातक कहा जाएगा। विपक्षी प्रत्याशियों और उनके समर्थकों को तो पीटा ही गया, पत्रकारों को भी नहीं बख्शा गया। कन्नौज में एबीपी तो एटा में आज तक की कुटाई हो गई। पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान जो कुछ हुआ उसे यही भाजपाई हिंसा-हिंसा चिल्ला रहे थे, लेकिन अब यूपी में जो हो रहा है उसे भाजपाई अंधभक्त क्या नाम देंगे। नामांकन के दोरान कहीं गोली-बम चले। कहीं पत्थरबाजी मारपीट हुई, प्रत्याशियों के अपहरण का प्रयास किया गया।

विपक्षी प्रत्याशियों के कपड़े फाड़ दिए गये, यहां तक की महिलाओं तक को निर्वस्त्र करने का प्रयास किया गया। एक संत की सरकार में लोकतंत्र खुद रहम की भीख मांगता सा लग रहा है। कल पूरे दिन सोशल मीडिया पर बेतरह वीडियो वायरल होते रहे, जिन्हें देखकर लग रहा था कि समाज कितना जहरीला कर दिया गया है।

सबसे ज्यादा ताज्जुब की बात तो यह रही कि जो टीवी न्यूज चैनल रात-दिन सरकार के चरण धो-धोकर पी रहे हैं, उनके लोग हचके-मारे और कूटे जा रहे हैं। फिर किसलिए इन पत्रकारों का जमीर नहीं जाग रहा है। क्या इनके संपादक इसकी जिम्मेदारी लेंगे। यह पिटाई किसी जिला संवाददाता की नहीं बल्कि आज तक और एबीपी की पिटाई है। देश के कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इसे लोकतंत्र की हत्या सहित शर्मनाक वाक्या करार दिया है। अभिशार शर्मा, अजीत अंजुम, दीपक शर्मा, रोहिणी सिंह सहित कई लोगों ने यूपी की योगी सरकार और उसकी चुनावी मंशा पर सवाल उठाया है। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश लिखते हैं कि उप्र में ब्लाक प्रमुख नामांकन और इससे पहले पंचायत अध्यक्षों का चुनाव जिस अभूतपूर्व पारदर्शी ढंग से हुआ है, उसे देखते हुए यूपी को चुनाव-संचालन के मामले में देश का आदर्श राज्य घोषित करना चाहिए। पूरे देश को भरोसा होना चाहिए कि विधानसभा चुनाव कराने में हमारे निर्वाचन आयोग को ये अनुभव काफी काम आयेंगे। वैसे भी आयोग में दो-दो आयुक्त यूपी से ही हैं। क्या वे इस छोटे से सवाल का जवाब देंगे। रामराज्य के विशेषण के शोर वाले इस सूबे में चुनाव की जरुरत भी क्या है?

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