आजमगढ़: दशहरे से पहले मिला दिवाली गिफ्ट

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निजामाबाद के दीयों से अमेरिका और साउथ अफ्रीका में मनेगी दिवाली
अब तक 90 लाख रुपये के दीये बनाने का मिल चुका है आर्डर


आजमगढ़। निजामाबाद कस्बे में तैयार ब्लैक पाटरी के बर्तनों का लोहा पूरी दुनिया मानती है। ब्लैक पाटरी के साथ ही अब यहां बनने वाले दीये भी विदेशों में अपना परचम फहरा रहे हैं। यहां बनने वाले खास तरह के दीयों से इस बार अमेरिका और साउथ अफ्रीका में लोग दिवाली मनाएंगे। विदेशों से आई डिमांड के कारण निजामाबाद के कारीगरों की दशहरे से पूर्व ही दिवाली का तोहफा मिल गया है। अब तक उन्हें 90 लाख रुपये के दीये बनाने का आर्डर मिल चुका है।
निजामाबाद कस्बे के साथ-साथ आसपास के गांव के लगभग 35 दीया कारोबारी इन दिनों पूरी मेहनत और लगन से दिया बनाने में जुटे हुए हैं। क्षेत्र में लगभग 40 किस्म के दीये बनाए जाते हैं। मुख्य दीया कारोबारी महेंद्र प्रजापति, बृजलाल्र, सोनू, अमेरिका, संदीप, हंसराज, पिंटू, त्रिभुवन, विजय आदि हैं। महेंद्र प्रजापति का कहना है कि हम सभी दीया कारोबारी इस वर्ष पूरी मेहनत से दीया बनाने में जुटे हुए हैं। हम लोगों को दीया बनाकर गुजरात, मुंबई, पुणे, नागपुर, नासिक, वापी, अहमदाबाद, गोरखपुर, सोनभद्र आदि जगहों पर भेजना है। इन सब प्रदेशों से हम लोगों को एक लंबा ऑर्डर प्रतिवर्ष मिलता है।
इस वर्ष ऑर्डर काफी मिला है जिसे हम लोग पूरा करने में जुटे हुए हैं। सभी कारोबारियों को मिलाकर अब तक लगभग एक करोड़ रुपये का आर्डर मिल चुका है। हमारे यहां गोल्डन, कॉइन दीया, ओरिएंटल दीया, देजी दीया, झूमर दीया, कटिंग दीया और सदा दीया तैयार होता है। जो यहां से सीधे मुंबई भेजा जाएगा वहां से वह ट्रांसपोर्ट के जरिए अमेरिका और साउथ अफ्रीका जाएगा। इस वर्ष जी-20 सम्मेलन के बाद हम लोगों को लंबा ऑर्डर मिट्टी के बर्तन का मिला है। इस समय सबसे ज्यादा मांग 12 किस्म की दीयों की हो रही है। जिसमें झूमर दीया, सादा दीया, स्टैंड दीया, कटिंग दीया, चांदनी दीया, गोल्डन कॉइन दीया, ओरिएंटल दीया, सदा दीया, जीरो दीया, नंबर वन मटकी दीया मुख्य हैं। सबसे ज्यादा बिकने वाली दिया गोल्डन, ओरिएंटल, सदा और मटकी दिया है
महेंद्र प्रजापति ने बताया कि निजामाबाद में ट्रांसपोर्ट और पैकेजिंग की व्यवस्था नहीं है। जिसके कारण हमें अपने दीयों की जो कीमत मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पाती है। हम लोग मुंबई, नागपुर, अहमदाबाद आदि जगहों से मिले आर्डरों को पूरा कर भेजते हैं। उनके द्वारा मनमाने रेट पर दूसरे देशों में उनकी सप्लाई की जाती है। लेकिन हमें उसका मामूली अंश ही मिल पाता है। अगर निजामाबाद में भी पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टेशन की व्यवस्था होती तो हमें अपनी मेहनत की पूरी कीमत मिलती।

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