आजमगढ़: जाने कहां गए वो दिन, मिलता ना कुछ बाजार में

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बाजार की मंदी से स्वांग रच कर आजीविका चलाने वाले फांकाकशी को मजबूर
पारिवारिक पेशे से मोहभंग कर भी नहीं भर पा रहे पेट-इरफान भांट
रिपोर्ट-वेद प्रकाश सिंह ‘लल्ला’
आजमगढ़। नगर एवं ग्रामीण क्षेत्र के बाजारों में पापी पेट का सवाल लेकर कभी जोकर,लैला-मंजनू,चार्ली चौपलिन, अनारकली,तो यादगार फिल्म शोले में हास्य अभिनेता असरानी द्वारा अभिनीत जेलर का रुप धारण कर स्वांग रच लोगों का मनोरंजन कर परिवार की आजीविका चलाने वाले बहुरुपिए आज भूखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं। सोमवार को शहर क्षेत्र में जोकर और अनारकली का स्वांग रच कर लोगों का मनोरंजन करते हुए भिक्षाटन के लिए मजबूर हुए गैर जनपद से आए दोनों कलाकार भीषण गर्मी में छांव देख अपनी प्यास बुझाने के लिए थोड़ी देर के लिए विश्राम करते हुए बाजार में मंदी का असर बताते हुए निराश मन से जो आपबीती बताए तो उनकी पीड़ा सुनकर उन्हें देखने के लिए जुटे लोगों की आंखें नम हो गईं।
बहुत कुरेदने पर अपना परिचय देते हुए बहुरुपिए इरफान भांट ने बताया कि तरह तरह के स्वांग रच कर पेट की भूख मिटाने का यह पेशा पुश्तैनी है। हमारे दादा मनोहर भांट आजीविका चलाने के लिए राजस्थान से चलकर परिवार सहित यूपी के जौनपुर जिले को अपना ठिकाना बनाया। यहां जौनपुर के मीर मस्त मोहल्ले में रहकर मेरे पिता रेयाज भांट और चाचा ने इस पुश्तैनी धंधे को आगे बढ़ाया। पिता जी कई दशक से इस जिले में आते रहे हैं और अपने हुनर से लोगों का मनोरंजन कर इसके बदले में हुई कमाई लेकर लंबा समय गुजारने के बाद जब घर पहुंचते थे तो उनके आने पर परिवार में उत्सव जैसा माहौल हो जाता था कारण कि उनके घर पहुंचने पर परिवार की हर जरूरत पूरी हो जाती थी। अब बुढ़ापे की वजह से वह कहीं जा नहीं पाते तो इस धंधे को हमने अपना लिया। बहुरुपिए इरफान और आजाद ने बताया कि पापी पेट का सवाल है इसलिए हम लोग परिवार का मोह त्याग कर प्रदेश के सभी जनपदों के साथ ही बंगाल,असोम आदि राज्यों के तमाम जिलों में बहुरुपिए का रूप धारण कर मनोरंजन के एवज में मिली बख्शीश से परिवार का खर्च चलाते हैं। इस समय बाजारों में मंदी का असर देखने को मिल रहा है जिससे हम केवल अपना पेट भर लें यही काफी है। खाली समय में क्या करते हैं तो इस पर उनका जवाब था कि शादी विवाह एवं अन्य मांगलिक अवसरों पर तरह तरह के स्वांग रच कर पेट पालने के साथ ही हम लोग गायन का भी कार्यक्रम प्रस्तुत कर परिवार का भरण पोषण करते हैं। परिवार के बारे में बताते हुए इरफान भांट ने बताया कि परिवार में बुजुर्ग माता-पिता, पत्नी, तीन बहन तथा दो भाईयों के भरण पोषण की जिम्मेदारी अकेले मेरे कंधों पर है। अपनी पीड़ा से अवगत कराते हुए दोनों ने यह कहकर हम सभी से विदा लिया कि हमसे का भूल हुई जो ई सजा हमका मिली। वहीं आजाद ने जाने कहां गए वो दिन जैसा मर्मस्पर्शी गीत गुनगुनाते हुए हम सभी से जिंदगी रही तो फिर मिलेंगे कह कर सभी को सोचने के लिए मजबूर करते हुए अपने अगले पड़ाव की ओर चल दिए।

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