भयावह नरसंहार : महिलाएं देखीं न बच्चे, गोलियां चलीं गिरीं लाशें

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पुलिस की वर्दी में आये थे आरोपी, आंखों में आज भी तरोताजा है दृश्य
फिरोजाबाद। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के कस्बा मक्खनपुर के गांव साढ़ूपुर में 42 साल पहले हुए नरसंहार की गूंज पूरे देश में थी। देश के बड़े नेताओं के कदम मक्खनपुर में पड़े। नेताओं की फौज लोगों के जख्म पर मरहम लगाने के लिए खड़ी थी। समय के साथ इस दर्द को सरकार भले ही भूल गई, लेकिन साढ़ूपुर के बुजुर्ग व उन परिवार के जख्म मानों आज भी तरोताजा हैं। पुलिस की वर्दी में आरोपियों ने जिस तरह गोलियां बरसाई वह दृश्य उनकी आंखों में आज भी तरोताजा है। कांग्रेस सरकार ने हर घर के एक व्यक्ति को नौकरी देने का वादा किया, लेकिन यह वादा पूरा नहीं कर सकी।
थाना मक्खनपुर के गांव साढ़ूपुर के बुजुर्गवार 30 दिसंबर 1981 की शाम गांव में हुए नरसंहार की घटना का जिक्र करते ही साढ़ूपुर निवासी प्रेमवती ने बताया कि 30 दिसंबर की शाम साढ़े छह बजे के करीब सर्दी थी। बादल छाए हुए थे। अचानक तीन लोग पुलिस की वर्दी में दाखिल हुए। शौच को जाती महिलाओं से पूछा कि अनुसूचित जाति की बस्ती किधर है। महिलाओं के इशारा करते ही उनका रुख उसी ओर हो गया। पहले तो उन्होंने सोना देवी पर गोली चलाई, वह घायल हो गईं। यहां शीलादेवी,सगुना देवी, पार्वती एवं सुरेशचंद्र की हत्या कर दी। आगे बढ़े तो प्रेमवती पत्नी रामभरोसे का परिवार था।
प्रेमवती के घर की ओर जाकर उन्होंने जेठ का बेटा प्रेम सिंह, जेठानी बैकुंठी देवी, उसके दो बेटा हरीशंकर (दस) छोटे उर्फ कैलाश (आठ), बेटी सुखदेवी(14) तथा चमेली देवी पत्नी सालिगराम के गोली मार दी थी। एक साथ दस की हत्या और दो महिलाओं के घायल होने की घटना की सूचना पर मटसेना पुलिस चौकी का फोर्स आया। पुलिस ने कोई हत्या नहीं होने की बात कही। ग्रामीणों ने घरों के अंदर पड़े शवों को दिखाया तब पुलिस को होश उड़े थे।
उस समय इंदिरा गांधी गांव में आने को थीं, लेकिन उनका हैलीकॉप्टर नहीं उतर सका था। कांग्रेस के मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने प्रत्येक मृतक के घर को सरकारी नौकरी देने का वायदा किया था। लेकिन वह वायदा आज तक पूरा नहीं हुआ। उस समय विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने भी कहा था कि जब हमारी सरकार बनेगी तो हम वायदा पूरा करने का काम करेंगे। आज तो प्रदेश एवं केंद्र में भाजपा की सरकार है हम दलितों की ओर देखना चाहिए।
साढ़ूपुर हत्याकांड में हत्या की शिकार हुई चमेली देवी के परिवार के राम रतन को आगरा यूनिवर्सिटी में नौकरी दी गई थी, लेकिन 18 माह तक नौकरी कराने के बाद हटा दिया था। राजनश्री को शिकोहाबाद के बीडीएम कॉलेज में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी मिली थी, लेकिन बाद में उन्हें भी हटा दिया था। सगुना देवी के दो बेटे रघुवर दयाल, लायक सिंह को नौकरी मिली थी। इन दोनों की नौकरी चलती रही। प्रेमवती ने दो बेटा और एक बेटी खोए और खुद घायल हो गई। लेकिन आज तक कोई लाभ नहीं मिला। साढ़ूपुर निवासी प्रेमवती कहती हैं कि उनके दो बेटा एवं एक बेटी की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद एक बेटा हुआ तो उसके नाम भी कैलाश रखा वहीं दूसरी बेटी को जन्म दिया तो उसका नाम सुखदेवी रख लिया था। ताकि इस घटना में मारे गए बेटा-बेटी का दुख कुछ कम हो सके। चमरौली निवासी रामप्रकाश ने बताया कि साढ़ूपुर कांड होने के बाद गांव में पीएसी का कैंप प्रशासन की ओर से स्थापित कराया गया था। पीएसी का कैंप लगातार छह वर्ष तक रहा था। इसके बाद गांव में ही सुरक्षा के लिहाज से पुलिस चौकी स्थापित कर दी थी। गांव में स्थापित यह चौकी 1993 तक चली थी। इसके बाद इसे हटा लिया था। शिकोहाबाद रेलवे स्टेशन पर 1981 में तैनात रहे गुड्स कुर्क रेलवे डीसी गौतम की सूचना पर शिकोहाबाद पुलिस ने गढ़ी दानसहाय के निवासी अनार सिंह गंगा दयाल तथा गलामई निवासी जयपाल सिंह के खिलाफ अभियोग पंजीकृत किया था। लेकिन पुलिस की जांच में सात और नाम शामिल किए थे। पुलिस की विवेचना में बढ़े नाम के साथ प्राथमिक रूप से दर्ज रिपोर्ट में तीन में से दो की मौत हो चुकी है। अकेले गंगा दयाल ही शेष हैं उन्हीं को सजा मिली है।

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