मरने वाले राख....मारने वाले खाक

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अदालत की मिलती तारीखों में अब भी जिंदा है बेहमई कांड
लखनऊ। 14 फरवरी 1981 को हुआ बेहमई कांड जिसने देश की तमाम राजनीतिक कुर्सियों को हिलाकर रख दिया था। इस कांड में दस्यु सुंदरी फूलन देवी ने अपनी गैंग के साथ मिलकर 20 से अधिक लोगों को लाइन में खड़ा कर गोलियों से भून दिया था। इस कांड के मुख्य आरोपी खत्म हो चुके हैं, बावजूद इसके अदालती प्रक्रिया समाप्त नहीं हो रही। अब इस मुकदमें की अगली सुनवाई 28 फरवरी को होनी है। कानपुर देहात के राजपुर थाना क्षेत्र के बेहमई गांव में हुए नरसंहार को 41 साल बीत चुके हैं। आज भी बेहमई गांव के लोगों में उस दिन को याद कर फुरफुरी दौड़ जाती है। यही नहीं बेहमई काण्ड के 41 साल बीत जाने के बाद भी काण्ड के पीड़ितों को न्याय की आस है, और फैसले का इंतजार है। घटना के 41 साल हो गए मुख्य वादी से लेकर आरोपियों तक की मौत हो गई है, लेकिन बेहमई काण्ड का फैसला नहीं आया, जिसका इंतजार आज भी लोग कर रहे हैं।
बेहमई कांड-जब फूलन देवी गांव वालों से कहती थी पुलिस को मेरा पता बता दो बेहमई गांव की उस डगर से गुजरते हुए यहाँ के बुजुर्गों के पैर डगमगाकर ठिठक जाते हैं। ग्रामीण कहते हैं, यहां दस्यु सुंदरी और डकैत फूलन देवी ने कई महिलाओं के सुहाग उजाड़ दिए थे, तो कइयों की कोख सुनी कर दी थी। यहां मृतकों के स्मारक के शिलापट पर 41 साल बाद आज भी नजर पड़ते ही गांव के लोगों की आंखें डबडबा जाती हैं। उनके परिवार के लोगों नाम उस नरसंहार में मारे गए 20 लोगों के नाम के साथ अंकित हैं, जिन्हें फूलनदेवी और उसके गैंग ने मौत की नींद सुला दिया था। गोलियों की बौछारों के बीच से बचकर निकले जेंटर सिंह ने स्मारक में एक घंटा लगवाया है, और गांव वाले इसे बजाकर याद रखना चाहते हैं कि इंसाफ की लड़ाई अभी बाकी है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक 41 साल पहले 14 फरवरी को दिन में लगभग एक से डेढ़ बजे दस्यु सुंदरी फूलन ने गिरोह के साथ बेहमई गांव को घेर लिया था। वह अपने जानी दुश्मन डाकू लालाराम और श्रीराम के बारे में ग्रामीणों से पूछ रही थी। उसे यकीन था कि ऊंची जाति बहुल इस गांव में इन दोनों डकैतों को उनकी बिरादरी के लोग शरण देते हैं।
फूलन ने घर-घर तलाशी ली, पर लालाराम, श्रीराम कहीं नहीं मिले, जिसके बाद फूलन देवी ने गांव के एक-एक पुरुष को खींचकर निकाला और पहले कुएं फिर गांव किनारे इकट्ठा कर उन्हें गोली से उड़ा दिया। इसमें 20 की मौत हो गई, पर जेंटर सिंह उर्फ चंदर सिंह समेत दो लोग बच गए। मारे गए लोगों की याद में घटनास्थल पर ही एक स्मारक बना दिया गया है। जेंटर सिंह ने वहीं स्मारक में पीतल का घंटा लगवाया, जिसे बजाकर याद दिलाया जाता है कि इंसाफ अभी बाकी है। बेटियन को अगर बचाने है तौ उनके हाथन में बंदूक थंमाये देव रू बेटी बचाओ पर सबसे पहले फूलन ने उठायी थी आवाज बेहमई के लोगों को इस काण्ड के 41 साल बीत जाने के बाद आज भी जल्द फैसला आने की उम्मीद है। मुकदमा बहस पर लगा हुआ है। बाद में डकैत से समर्पण कर राजनीति में प्रवेश कर राजनेता बनीं फूलन देवी भी नहीं बची हैं, मगर न्याय की आस ग्रामीणों में अभी भी बची हुयी है।
गौरतलब है कि 14 फरवरी 1981 को बेहमई में फूलन देवी और उनके गैंग ने 20 लोगों की हत्या की थी। उसी दिन गांव के राजाराम ने फूलन, पोसा, विश्वनाथ सहित 35-40 डकैतों पर सिकंदरा थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई। थी। गैंग के साथ आत्मसमर्पण करती फूलन इस घटना के बाद 12 फरवरी 1983 को फूलन ने गैंग सहित मध्यप्रदेश में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के सामने आत्मसमर्पण किया। इस 11 साल बाद केस की सुनवाई शुरू हुई। गवाहों की सूची, चश्मदीद, घटनास्थल का नक्शा और जरूरी कानूनी प्रक्रिया पूरी की गई और 31 साल बाद आरोप तय हुए और 32 साल में गवाही पूरी हुई। 43 में 15 गवाहों के बयान कोर्ट में हुए। कई गवाहों की मौत भी हो गयी।
अब 15 अभियुक्तों जिनमें फूलन देवी भी शामिल हैं, की मौत हो चुकी है। चार जिंदा हैं, जिनमें से दो अभी भी फरार हैं और बाकी जमानत पर बाहर हैं। इस कांड का फैसला 2019 दिसंबर में आना था, लेकिन मूल केस डायरी गायब होने के कारण यह नहीं हो पाया। पिछले साल कोरोना के प्रकोप के कारण इस केस की भी सुनवाई टल गयी और इसी बीच 14 दिसंबर 2020 को 85 वर्षीय वादी राजाराम की मौत हो गयी। गुढ़ा का पुरवा में लगी फूलन की प्रतिमा हालांकि 2 फरवरी 2021 को इस केस की तारीख तय की गयी थी, मगर कार्रवाई आगे नहीं बढ़ पायी। पिछली दफा 17 फरवरी को मिली तारीख के बाद अब तक कई तारीखें पड़ चुकी हैं। अब फिर से नई तारीख 28 फरवरी 2021 दी गई है। बशर्ते फैसला इस तारीख को होने की संभावना कम ही है। मुख्य वादी की भी हो चुकी है मौत 14 दिसंबर 2020 को बेहमई कांड के मुख्य वादी ठाकुर राजाराम की 85 साल की उम्र में निधन हो गया था। 39 साल से ज्यादा समय तक उन्होंने कोर्ट में बेहमई कांड की लड़ाई लड़ी, लेकिन वह पीड़ितों को इंसाफ नहीं दिला पाए। राजाराम के बाद जेंटर सिंह बतौर वादी मुकदमे से जुड़े थे लेकिन अब उनकी भी मौत हो गई है।

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