आजमगढ़: मनोकामना पूर्ण करती हैं हृदयस्थल पर आसीन दक्षिणमुखी देवी

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दक्षिण एशिया में मात्र दो देवियां जो दक्षिणमुख होकर देती हैं आशीष
रिपोर्ट-वेद प्रकाश सिंह ‘लल्ला’
आजमगढ़। शहर के हृदय स्थल पर विराजमान दक्षिण मुखी देवी का दरबार, यहां भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण होती है। देवी का विराट स्वरूप जहां वासंतिक एवं शारदीय नवरात्र के अवसर पर मां के नौ स्वरूपों का दिव्य दर्शन श्रद्धालुओं को सुलभ रहता है। सैकड़ों वर्ष पुरातन इस देवी मंदिर का महात्म्य भी कुछ कम नहीं। आइए आपको इस देवी दरबार के बारे में कुछ रोचक जानकारी देते हैं।
दक्षिण एशिया में स्थित भारत देश में मात्र दो सुविख्यात मंदिर हैं, जहां आराध्य देवी दुर्गा दक्षिण मुख होकर अपने भक्तों को सुख एवं समृद्धि का आशीष प्रदान करती हैं। इन भव्य मंदिरों में कोलकाता का दक्षिणेश्वर मंदिर और दूसरा अपने शहर के मुख्य चौक पर स्थित दक्षिणमुखी देवी मंदिर स्थित है। मंदिर के स्थापना की बात की जाए तो बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व मुख्य चौक के करीब से तमसा नदी प्रवाहित होती थी। नदी के किनारे फैले जंगल व झाड़ियों के बीच जगह-जगह रेत के टीले बन गए थे। इसी दौरान भैरव तिवारी नामक देवी भक्त रेत से बने टीलों के बीच देवी की आराधना में लीन रहते थे। तप- साधना के दौरान उनके मन में देवी का विग्रह स्वरूप स्थापित करने का विचार उठा और वह रेत के टीलों को समतल करने में जुट गए। बताया जाता है कि देवी भक्त के अथक मेहनत से प्रसन्न देवी ब्राह्मण के मन में उठे विचार को जान उन्हें आशीष प्रदान कीं और उस दौरान रेत के टीले से काले पत्थर से निर्मित देवी प्रतिमा स्वतः प्रकट हुईं। धरती से उत्पन्न हुई इस देवी प्रतिमा को देखने के लिए बहुत दूर-दूर से आए लोगों ने देवी का दिव्य दर्शन प्राप्त किया। इसके बाद लगभग 350 वर्ष पूर्व इस स्थान पर मंदिर निर्माण का कार्य जनसहयोग से पूर्ण किया गया। तभी से पुजारी भैरव तिवारी के वंशज इस मंदिर में पूजा-अर्चना का कार्य करते चले आ रहे हैं। इस संबंध में देवी मंदिर के छोटे महंत योगेश कुमार तिवारी उर्फ सोनू बाबा बताते हैं कि वर्ष में पड़ने वाले वासंतिक एवं शारदीय दोनों नवरात्र बेला में देवी भक्तों को माता रानी के नौ स्वरूपों का दर्शन प्राप्त होता है। देवी के मूल स्वरूप के बारे में उन्होंने रोचक जानकारी देते हुए बताया कि यहां विराजमान देवी के चेहरे का भाव चारों पहर बदलता रहता है। मंदिर में पूजा-अर्चना का कार्य हमारे परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। हमारे कुटुंब की सात- आठ पीढ़ियां सैकड़ों वर्षों से इस जिम्मेदारी का निर्वहन पूरी निष्ठा से निभाती चली आ रही है। उन्होंने बताया कि हमारे परिवार में कभी कोई विपदा भी आई तो मंदिर में पूजा-अर्चना बंद नहीं की गई। देवी का श्रृंगार सदैव की भांति नियमित होता चला आ रहा है। देवी दरबार में दर्शन करने वाले भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। मन्नत पूरी होने पर भक्तों द्वारा भी श्रृंगार कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। शहर के हृदय स्थल पर विराजमान यह देवी अपने भक्तों की समस्त मनोकामना पूर्ण करती हैं। शारदीय नवरात्र के अवसर पर मंदिर में उमड़ने वाली भीड़ इस दक्षिणमुखी देवी के प्रति श्रद्धा का भाव प्रदर्शित करती हैं।

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