आजमगढ़ : शक्तिपीठों में वर्णित है मां पाल्हमेश्वरी धाम

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-वेद प्रकाश सिंह ‘लल्ला’
आजमगढ़। जिला मुख्यालय से 40 किमी दक्षिण दिशा में लालगंज-तरवां मार्ग पर माता पाल्हमेश्वरी धाम स्थित है। देवी मां के नाम बसे बाजार को लोग पल्हना बाजार के नाम से जानते हैं। माता की महिमा का वर्णन पद्म पुराण, रामचरित मानस व महाभारत में मिलता है। वाराह पुराण में मां पाल्हमेश्वरी देवी का नाम आया है। पूरे वर्ष और नवरात्र के समय भक्तों का दर्शन-पूजन, पूडी- हलवा का भोग चढ़ाने के साथ ही विवाह, मुंडन तथा सामाजिक समस्याओं के समझौता का कार्य इस दिव्य स्थान पर पूरे वर्ष जारी रहता है।
पौराणिक स्थल का इतिहास-पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव के अपमान से क्षुब्ध होकर सती (मां पार्वती) ने हवन कुंड मे स्वयं की आहुति दे दी थी। सिद्ध आसन पर बैठी मां सती के मृत शरीर को कंधे पर रखकर आत्मा व मन की शांति के लिए भगवान शिव त्रिलोक भ्रमण करते हुए बैकुंठ धाम पहुंच गए। शिव की ऐसी दशा देखकर सृष्टि को देवाधिदेव शिव के कोप से बचाने के लिए चिंतित भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को चार टुकड़ों में विभक्त कर दिया। पहला टुकड़ा नेपाल के हिंगराज पर्वत पर गिरा, जो हिंगलाज भवानी गुहोजेश्वरी, दूसरा टुकड़ा विंध्य पर्वत पर गिरा, जो अष्टभुजी वाराहिनी देवी, तीसरा टुकड़ा असम के कुंभ पर्वत पर गिरा, जो कामाक्षी (कामाख्या) देवी और और चौथा टुकड़ा आजमगढ़ जिले के पल्हना क्षेत्र में गिरा, जो मां पाल्हमेश्वरी देवी के नाम से जाना जाता है। महाभारत में वन पर्व में वर्णन मिलता है कि जब पांडव वन गए थे, तो नारद मुनि से युधिष्ठर ने पृथ्वी के तीर्थस्थलों की जानकारी ली थी और उनकी प्रेरणा से यहां आए थे। यह मंदिर कुछ वर्षाे पहले जीर्ण अवस्था में था लेकिन पल्हना ब्लाक के भरथीपुर निवासी रामबचन सिंह ने देवी मंदिर का जीर्णाेधार कर मंदिर का स्वरूप प्रदान किया।
.विशेषता- मां पाल्हमेश्वरी की प्रतिमा की प्रचलित कथाओं के अनुसार लगभग 256 वर्ष पूर्व यहां देवी की पाल्थी का आकार था, जिसके घुटने के ऊपर का हिस्सा गायब था। संत खाका बाबा ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था। वर्षों पूर्व महापंडित राहुल सांकृत्यायन यहां आए और प्रतिमा के चारो ओर खोदाई कराई। लगभग 10 मीटर की खोदाई में मां के पाल्थी का पता नहीं चला। खोदाई जितनी होती जाती थी मां की पाल्थी उतनी लंबी होती गई। अंततरू खोदे गए गड्डे को राहुल सांकृत्यायन ने पटवा दिया और उसी स्थान पर देवी पाल्थी के ऊपर प्रतिमा का निर्माण कराया गया।
माता के दरबार में हमेशा सुख-शांति का सुखद एहसास होता है। यह सिद्ध पीठ 152 पीठों में 52 वां सिद्धपीठ है। यहां वर्ष में चार बड़े मेले लगते हैं। इसमें चौत पूर्णिमा का मेला सबसे बड़ा मेला होता है। भक्त मंदिर की सीढ़ियों पर मत्था टेक सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। जो भक्त मां की शरण में निः स्वार्थ भाव से आता है, उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण हो जाती है। इन दिनों शारदीय नवरात्र के अवसर पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है। जनपद के अलावा आसपास के जिलों से भी श्रद्धालुओं के आने का क्रम जारी है।

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