अर्थी को कंधा देने के लिए लग रही है बोली

Youth India Times
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वाराणसी। महामारी ने स्थितियां ऐसी बनाई कि अपने भी दुख में साथ नहीं खड़े हो पा रहे ।
वाराणसी वही शहर है जहां मुंशी प्रेमचंद्र की रचना मंत्र का पात्र भगत जैसे लोग होते थे, जो अपना दुख छोड़कर दूसरों के दुख को दूर करने का प्रयास करते थे। लेकिन महामारी ने स्थितियां ऐसी बना दी हैं कि अब तो अपने भी दुख में साथ नहीं खड़े हो पा रहे हैं। ऐसे में भगत जैसे तो किरदार नहीं हैं लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो पैसा लेकर 'भगत' बनने का काम कर रहे हैं।
हरिश्चंद्र घाट पर अंतिम यात्रा के दौरान चार कंधे भी अब चार से पांच हजार में उपलब्ध हो रहे हैं। कोरोना संक्रमण के कारण मौत होने पर परिजन भी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हो पा रहे हैं। स्थितियां ऐसी बन जा रही हैं कि शव के साथ एक या दो आदमी ही घाट पर पहुंच रहे हैं। ऐसे में शव को सड़क से लेकर चिता तक पहुंचाने के लिए चार कंधों की बोली चार से पांच हजार रुपये में लग रही है। कुछ युवाओं की टोली पैसों के लिए जान हथेली पर रखकर इस काम को अंजाम दे रही है। एक तरफ जरूरत है तो दूसरी तरफ विवशता। मोक्ष की नगरी काशी में अब चार कंधे भी बिना पैसों के उपलब्ध नहीं हो रहे हैं।
केस एक : नरिया के दीपक कोरोना संक्रमित परिजन का शव लेकर हरिश्चंद्र घाट पर वाहन से पहुंचे। उनके साथ उनका भाई राजेश भी था। शव को कंधा देने के लिए चार कंधे नहीं होने से वह बेचारगी से इधर-उधर देख रहे थे। तभी एक युवक उनके पास पहुंचा और उसने कहा कि परेशान न हों हम कंधा दे देंगे। आश्चर्य से देखने के बाद बाद दीपक ने कहा कि कोरोना संक्रमण से मौत हुई तो युवक ने कहा कि कोई बात नहीं है आप बस पांच हजार रुपये दे दिजिएगा, चिता तक शव को हम पहुंचा देंगे। राजेश ने असमर्थता जताई तो युवक ने कहा कि थोड़ा कम कर देंगे आप एक बार हां बोल दीजिए। इसके बाद 3500 सौ रुपये पर बात पक्की हो गई।
केस दो : चेतगंज पान दरीबा के प्रभानंद के परिजन की कोरोना संक्रमण से अस्पताल में मौत हो गई। वह अस्पताल से सीधे हरिश्चंद्र घाट पहुंचे। अकेले होने के कारण शव को घाट तक ले जाने की समस्या थी। दो युवक उनको परेशान देखकर उनके पास पहुंचे और कंधा देने की बात कही। ऐसे में मोलभाव भी हुआ और बात चार हजार में पक्की हो गई। इसके बाद चार युवकों ने शव को टिकठी पर बांधने, घाट तक पहुंचाने, कफन देने और चिता तक पहुंचाने का काम पूरा किया। काम होने के बाद पैसे लेकर युवक चले गए।
अंतिम यात्रा में चार कंधों के इंतजाम के लिए पैसे देने पड़ रहे हैं। महामारी काल में इस तरह की स्थितियां बेहद शर्मिंदा करने वाली हैं। हालात ऐसे हैं कि सभी के सामने विवशता है। मोक्ष परंपरा वाले शहर काशी में इस तरह की घटना हर किसी के लिए विचारणीय है।
-कन्हैया दुबे, केडी, दशाश्वमेध
कोरोना काल में जब अपने अंतिम यात्रा में शामिल नहीं पा रहे हैं तो जाहिर सी बात है चार कंधों की कमी तो महसूस होगी। पैसे लेकर जान जोखिम में डालकर कुछ युवा कोरोना से मरने वालों को कंधा दे रहे हैं। ऐसी परिस्थितयां हैं कि इस बारे में कुछ कहा भी नहीं जा सकता है।
-विकास यादव, विशेश्वरगंज

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