माननीयों की राजनीतिक दशा और दिशा तय करेगा पंचायत चुनाव

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त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को विधानसभा चुनाव की रिहर्सल के रूप में ले रही हैं पार्टियां

सभी प्रमुख दल जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी उतार रहे, अन्य पदों पर समर्थन का दांव


लखनऊ। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे मौजूदा विधायकों की भी परीक्षा लेंगे। इस चुनाव में पार्टी के अधिकृत दावेदारों की जीत बताएगी कि चार वर्ष पहले चुने गए विधायकों की लोकप्रियता किस स्तर पर है। यह भी पता चलेगा कि सांसदों, विधायकों व संगठन में समन्वय के दावे जमीन पर कितने असरदार हैं। पंचायत चुनाव के नतीजे पार्टियों को विधानसभा चुनाव की रणनीति बनाने में भी मददगार साबित होने वाले हैं।
प्रदेश में पंचायत चुनाव का कार्यक्रम घोषित होने के साथ ही गंवई राजनीति चरम पर पहुंच गई है। इन चुनावों में पार्टियों का सिंबल नहीं रहता है, लेकिन भाजपा, सपा, बसपा, कांग्रेस और आप ने जिला पंचायत सदस्य के पद पर अधिकृत उम्मीदवार उतारने का एलान किया है। अधिकृत उम्मीदवारों की जिताने की जिम्मेदारी सांगठनिक इकाइयों के साथ क्षेत्रीय विधायकों, सांसदों व स्थानीय प्रभावशाली नेताओं को सौंपी गई है।
भाजपा के जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशी प्रदेश से फाइनल होंगे तो बसपा ने यह जिम्मेदारी मुख्य जोन इंचार्जों को सौंपी है। सपा की जिला इकाइयां प्रत्याशी तय करेंगी। कांग्रेस ने भी अपने उम्मीदवार उतारने की घोषणा की है और आप ने प्रत्याशियों का एलान भी शुरू कर दिया है।
पंचायत चुनाव प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच जोर-आजमाइश के साथ ही मौजूदा विधायकों व विधानसभा चुनाव में टिकट के दावेदारों की प्रतिष्ठा का सबब बन गए हैं। अधिकृत जिला पंचायत सदस्य प्रत्याशियों की जीत-हार बताएगी कि दलों का जनाधार किस स्तर पर है। विधायकों व सांसदों के क्षेत्र में अधिकृत प्रत्याशियों की जीत-हार उनके जनाधार की कसौटी बनने वाले हैं। जीत-हार यह भी तय करेगी कि बेहद प्रतिष्ठा वाली जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी कितने जिलों में कितनी आसानी या कठिनाई से किस पार्टी को मिलने वाली है। ऐसे में जिला पंचायत सदस्य चुनाव के नतीजे आगामी विधानसभा चुनाव पर प्रभाव डालने वाले माने जा रहे हैं। ये चुनाव कई माननीयों के आगामी विधानसभा टिकट के समीकरण बना और बिगाड़ सकते हैं।
बीडीसी व प्रधान के पद पर बड़ों की प्रतिष्ठा
पार्टियों की ओर से ग्राम प्रधान तथा क्षेत्र पंचायत सदस्य (बीडीसी) के पदों के लिए अधिकृत उम्मीदवार उतारने का एलान नहीं किया गया है, लेकिन विभिन्न पार्टियों के स्थानीय प्रभावशाली नेता इन पदों पर समर्थकों को चुनाव लड़ाने व जिताने की रणनीति बना रहे हैं। विधायकों व सांसदों की भी दिलचस्पी सामने है। माना जा रहा है कि बीडीसी में दिलचस्पी आगामी क्षेत्र पंचायत प्रमुख के चुनाव को लेकर है तो जिला पंचायत सदस्य की तरह प्रधान, बीडीसी भी भविष्य के एमएलसी चुनाव में वोटर रहने वाले हैं।
14वें वित्त आयोग से पंचायतों को बड़ा आवंटन मिलना शुरू हुआ है। 15वें वित्त आयोग ने 2020-21 सहित छह वर्षों में 47,764 करोड़ के आवंटन पर सहमति दी है। अगले पांच वर्षों में (2021-22 से 2025-26 तक) नव निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों के माध्यम से 38 हजार करोड़ से अधिक खर्च होने वाले हैं। कई ग्राम पंचायतों को अच्छे प्रदर्शन से पिछले पांच वर्ष में एक करोड़ रुपये तक बजट मिला है। राज्य वित्त व अन्य मदों से मिलने वाली राशि इसके अलावा है। इन पदों पर रहे लोगों की बढ़ी शान-ओ-शौकत भी लोगों को आकर्षित कर रही है। ऐसे में इन पदों पर गांव-गांव प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई है।

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