कौलेश्वर राम हलवाई की रखी नींव आज भी जीवंत
रिपोर्ट : आरपी सिंह
आजमगढ़। जनपद के फूलपुर की गल्लामंडी में दशहरा मेला और रामलीला की गौरवशाली परंपरा आज भी कायम है, जिसकी नींव वर्ष 1964 में प्रतिष्ठित व्यवसायी स्व. कौलेश्वर राम हलवाई ने रखी थी। आश्विन मास शुक्ल पक्ष नवरात्रि के प्रथम दिवस से शुरू हुई यह परंपरा अनवरत जारी है और आज यह आयोजन ऐतिहासिक रूप में विख्यात हो चुका है।
कौलेश्वर राम हलवाई ने छोटे-छोटे बच्चों के साथ मिलकर 1964 में पहली बार राम, लक्ष्मण, सीता, भरत और शत्रुघ्न की झांकी को रिक्शा वाहन पर सजाकर गल्लामंडी से निकाला। दशमी तिथि को मेले का नेतृत्व किया गया, जिसने फूलपुर के दशहरा को एक नई पहचान दी।
वर्ष 1974 में बांकेलाल आर्य के संयोजन में श्री राम रूंगटा, दत्ताराम सेठ, कृष्ण कुमार पांडे, नंदलाल जायसवाल, रामचंद्र जायसवाल, आनंद प्रकाश कसौधन, श्री चंद हलवाई, सुरेश चंद हलवाई और कामता प्रसाद कांदु जैसे नवयुवकों ने मिलकर नव युवक दल का गठन किया। इसी वर्ष आश्विन मास शुक्ल पक्ष नवरात्रि की प्रथम रात्रि को नारद मोह से रामलीला मंचन की शुरुआत हुई। इस मंचन में जगरनाथ पाण्डेय ने राम, अनिल प्रजापति ने लक्ष्मण, दत्ताराम सेठ ने दशरथ और श्री चंद हलवाई व सुबास हलवाई ने रावण की भूमिका निभाकर दर्शकों का दिल जीता। हास्य कलाकार सुरेश हलवाई और कामता प्रसाद कांदु ने अपने अभिनय से दर्शकों को खूब हंसाया।
समय के साथ फूलपुर की रामलीला ने दूर-दूर तक अपनी पहचान बनाई। देर रात तक चलने वाले इस मंचन को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते और भाव-विभोर होकर लौटते। स्व. कौलेश्वर राम, श्री चंद हलवाई, दत्ताराम सेठ, सुबास हलवाई और सुरेश हलवाई जैसे कई कलाकार आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन रामलीला मंचन के दौरान उनकी यादें आज भी लोगों की आंखें नम कर देती हैं।
कुछ समय बाद नव युवक दल का नाम नव युवक ज्योति समिति और अब रामलीला समिति के रूप में जाना जाता है। इस समिति के नेतृत्व में रामलीला का मंचन निरंतर होता रहा। हालांकि, इस बार समय की कमी के कारण अयोध्या से बाहरी कलाकार रामलीला मंचन के लिए आमंत्रित किए गए हैं। फिर भी, स्थानीय लोग चाहते हैं कि उनकी परंपरा और स्थानीय कलाकारों की पहचान जीवंत रहे। समिति ने आश्वासन दिया है कि अगले वर्ष स्थानीय कलाकारों के उत्कृष्ट अभिनय को प्राथमिकता दी जाएगी।



