हाईकोर्ट की सख्त नाराजगी के बाद दिया सख्त निर्देश
लखनऊ। जमीनों के दाखिल-खारिज (नामांतरण) में देरी को लेकर अब जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) और मंडलायुक्त भी जिम्मेदार होंगे। हाईकोर्ट की सख्त नाराजगी के बाद प्रमुख सचिव राजस्व पी. गुरुप्रसाद ने शासनादेश जारी कर मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को कड़े निर्देश दिए हैं। राजस्व संहिता-2006 की धारा 34/35 के तहत गैर-विवादित मामलों में 45 दिनों और विवादित मामलों में 90 दिनों के भीतर नामांतरण का निस्तारण अनिवार्य किया गया है।
शासन ने कहा है कि कई जिलों में समयसीमा का पालन नहीं हो रहा, जिसके चलते हाईकोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल हो रही हैं। कोर्ट ने इस पर कड़ा रुख अपनाया है। अब सभी लंबित मामलों को राजस्व परिषद केस मैनेजमेंट सिस्टम (आरसीसीएमएस) पोर्टल पर अनिवार्य रूप से पंजीकृत करना होगा। जानबूझकर प्रार्थना पत्रों को लटकाने वाले कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
मंडलायुक्त और जिलाधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे कार्ययोजना बनाकर लंबित मामलों की समीक्षा करें और तहसील स्तर पर पीठासीन अधिकारियों को समयबद्ध निस्तारण के लिए जवाबदेह बनाएं। हाईकोर्ट के आदेशों वाले मामलों की सुनवाई प्रतिदिन तय तिथि पर होगी। निर्देशों की अवहेलना करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई का प्रस्ताव शासन और राजस्व परिषद को भेजा जाएगा।
दाखिल-खारिज राजस्व रिकॉर्ड में स्वामित्व परिवर्तन की प्रक्रिया है, जो जमीन की बिक्री, दान या उत्तराधिकार के आधार पर की जाती है। यह प्रक्रिया राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण के लिए जरूरी है। हाईकोर्ट की फटकार के बाद शासन ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया है। समयबद्ध और गुणवत्तापूर्ण निस्तारण सुनिश्चित करने के लिए सभी स्तरों पर जवाबदेही तय की गई है।







