सिपाही प्रियंका मिश्रा की कहानी: पहले सस्पेंड फिर इस्तीफा

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सेवा में वापसी हुई पर 48 घंटे में ही गई नौकरी, जानें वजह

आगरा। आगरा में रील से ट्रोल होकर त्यागपत्र देने वाली महिला सिपाही प्रियंका मिश्रा की सेवा में वापसी और 48 घंटे के भीतर ही आदेश निरस्त होने का मामला चर्चा में बना हुआ है। कमिश्नरेट के बाबू ने तथ्य छिपाकर आदेश कैसे करा लिया। प्रार्थना पत्र की जांच एसीपी मुख्यालय को दी गई थी। इस प्रकरण में अकेला बाबू ही दोषी है या अन्य कर्मचारी भी शामिल हैं, अब इन सभी बिंदुओं की जांच होगी। करीब 25 माह पहले सेवा से त्यागपत्र दे चुकी महिला आरक्षी प्रियंका मिश्रा ने सेवा में वापसी के लिए प्रार्थना पत्र दिया था। त्यागपत्र पूर्व में स्वीकार हो चुका था। महिला सिपाही से ट्रेनिंग के दौरान खर्चे के लिए रुपये जमा कराए गए थे। प्रार्थना पत्र की जांच एसीपी मुख्यालय को दी गई थी। क्या एसीपी मुख्यालय ने अपनी जांच में इन तथ्यों का खुलासा किया था। यदि नहीं तो वह त्यागपत्र की तह तक क्यों नहीं गए। प्रार्थना पत्र पर उनकी रिपोर्ट के बाद सेवा में वापसी की फाइल तैयार हुई। प्रस्ताव पुलिस मुख्यालय भेजा जाना था।
तथ्य छिपाकर पुलिस आयुक्त से सिपाही की सेवा में वापसी का आदेश करा लिया गया। आरोपी बाबू जितेंद्र ने किस लालच में यह कदम उठाया। पुलिस महकमे में यह प्रकरण चर्चा का विषय बना रहा। बाबू के खेल से एक बार फिर प्रियंका मिश्रा अवसाद में आ गई है। सितंबर 2021 में सोशल मीडिया पर महज एक वीडियो अपलोड करने पर उनकी नौकरी चली गई। ट्रेनिंग का खर्चा भी भरना पड़ा। अब वही स्थितियां फिर पैदा हो गईं। उन्होंने अपनी आर्थिक हालत खराब बताते हुए दोबारा नौकरी मांगी थी। आपको बता दें कि आगरा में रील से ट्रोल होकर त्यागपत्र देने वाली महिला सिपाही प्रियंका मिश्रा को दोबारा तीन दिन पहले नौकरी मिल गई थी। लिपिक जितेंद्र ने तथ्य छिपाकर सेवा में पुनरू वापसी का आदेश पारित करा लिया था। इसकी जानकारी पर पुलिस आयुक्त ने लिपिक को निलंबित कर दिया। सेवा में वापसी का आदेश भी निरस्त कर दिया। महिला सिपाही ने पहले रील के लिए त्याग पत्र दिया था। दोबारा गलत तरीके से भर्ती हुई तो 48 घंटे में नौकरी चली गई। अब यह मामला विभाग में चर्चा का विषय बना है। पुलिस आयुक्त डॉ. प्रीतिंदर सिंह ने बताया कि प्रियंका मिश्रा ने प्रार्थनापत्र दिया था। इसमें आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने, जीवन यापन में कठिनाई का हवाला देते हुए सेवा में पुनरू वापसी का आग्रह किया। सहायक पुलिस आयुक्त कार्यालय को जांच दी गई। प्रकरण में संयुक्त निदेशक, अभियोजन से विधिक राय ली। उन्होंने नियुक्ति प्राधिकारी की ओर से निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए स्वविवेक के अनुसार निर्णय लिए जाने के लिए राय दी। मामले में त्यागपत्र के पश्चात सेवा में लेने से संबंधित नियमावली और आदेशों के लिए समस्त पत्रावली को पुलिस मुख्यालय भेजा जाना चाहिए था। इसके बाद ही अग्रिम आदेश पारित कराया जाना चाहिए था। मगर, लिपिक ने ऐसा नहीं किया। तथ्यों को संज्ञान में लाए बिना ही महिला सिपाही को पुनः सेवा के लिए 18 अक्तूबर को आदेश पारित करा लिया। यह नियम के खिलाफ किया। लिपिक को निलंबित किया गया है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को जांच दी गई है। महिला आरक्षी को पुनः सेवा लेने का आदेश भी निरस्त कर दिया गया।

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