आजमगढ़: राष्ट्रभाषा हिन्दी को समर्पित एसकेडी में हुए विविध कार्यक्रम

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मातृभाषा के महत्व को समझते हुए इसका अधिक से अधिक प्रयोग करने का लिया संकल्प


आजमगढ़। जहानागंज क्षेत्र के धनहुंआ स्थित एसकेडी विद्या मन्दिर एवं एसकेडी इण्टर कॉलेज में गुरूवार को हिन्दी दिवस के अवसर पर परिचर्चा, कविता लेखन, निबन्ध लेखन, सुलेख एवं आलेख, कविता वाचन आदि कार्यक्रम संपन्न हुआ जिसके माध्यम से लोगों ने अपनी मातृभाषा के महत्व को समझते हुए इसका अधिक से अधिक प्रयोग करने का संकल्प लिया।
आज के परिवेश में हिन्दी की उपयोगिता विषय पर वाद विवाद प्रतियोगिता में भाग लेते हुए छात्र/छात्राओं ने हिन्दी की उपयोगिता के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए अंग्रेजी भाषा से इसकी तुलना भी किया। पक्ष के प्रतिभागियों का कहना था कि हम अपनी मातृभाषा में किसी भी विषय को आसानी से समझ सकते हैं जबकि विपक्ष के छात्रों का तर्क था कि मेडिकल, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई के लिए अंग्रेजी बेहद जरूरी हो जाती है। इस तर्क को काटते हुए पक्ष के छात्रों का उत्तर था कि भारत देश में आर्यभट्ट, नागार्जुन, चरक जैसे विद्वान तब हुए जब यहां अग्रेंजी का नामोनिशान नहीं था। हिन्दी की अध्यापिका ममता शुक्ला और पूजा यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिन्दी के महत्व को आज देश ही नहीं विदेश में भी समझा जा रहा है। वह दिन दूर नहीं जब यह एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा होगी। प्रतियोगिता में आरजू सिन्हा, वृष्टि राज, उपासना, शशांक, मनीष, पुनीत आदि ने भाग लिया। नर्सरी से यूकेजी के विद्यार्थियों ने कविता पाठ में भाग लिया। कक्षा 1 और 2 के आलेख, 3 से 5 तक के छात्र कविता लेखन और 6 से 8 तक के विद्यार्थियों ने निबन्ध लेखन मंे भाग लिया। कक्षा 9 से 12 तक के छात्र वाद-विवाद एवं परिचर्चा में भाग लिए। एसकेडी इण्टर कालेज के छात्राओं द्वारा हिन्दी दिवस पर बनायी गयी पेंटिंग लोगों को काफी भायी।
अपने वक्तव्य में विद्यालय के प्रधानाचार्य रामजी चौहान एवं संजय श्रीवास्तव ने कहा कि हिन्दी जिस देवनागरी लिपि पर आधारित है वह विश्व की सबसे व्यवस्थित एवं वैज्ञानिक लिपि है जिसका उपयोग कंप्यूटर के लिए वरदान हो रहा है। यह एक समावेशी भाषा है जिसमें किसी दूसरे भाषा के शब्दों को भी अपनाने की क्षमता सबसे अधिक है। मातृभाषा के महत्व को समझत हुए सरकार ने नई शिक्षा नीति में इसे शुरूआती शिक्षा के लिए अनिवार्य कर दिया है। कार्यक्रम को सफल बनाने में श्रीकान्त सिंह, संतोष, विद्योतमा, रेनू, रूबी आदि का योगदान सराहनीय रहा।

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