आजमगढ़ : अपना शहर मगरुवा -लीडराबाद लीडरो को आबाद रखने वाला इलाका - बनवारी जालान

Youth India Times
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18 साल पहले ---

आजमगढ़ - कलेक्ट्री कचहरी स्थित ''लीडराबाद '' में एक होटल की बेंच पर खुले आकाश बैठे युवा नेता वीरेन्द्र सिन्हा को एक आगन्तुक ने बताया कि '' मैं बहुत परेशान हूँ " | मेरे भाई का पैर टूट गया है |'' युवा नेता ने सहजभाव से पूछा कि ''दोनों टूट गया है अथवा एक एक '' | युवा नेता की शैली पर आगन्तुक को चिडचिडाहट हुई तो वीरेन्द्र सिन्हा ने कहा कि '' भाई मेरे पूछने का गलत अर्थ न लें | मैंने तो इसलिए पूछा कि यदि दोनों टूट गया तो थोड़ी गंभीरता से सम्वेदना व्यक्त करूँ और एक ही टूटा है तो हल्के - फुल्के ढंग से ''-- लीडराबाद में इस शैली में बातचीत आम बात है | यहाँ नित्य बहुत सी बाते गढी जाती है | और उनके प्रसारण का उपक्रम होता है | कलेक्ट्री कचहरी से लगे सडक के किनारे दो पीपल के वृक्षों के बीच स्थित रिक्शा स्टैण्ड से लेकर उसके पश्चिम में एक जमाने के मशहूर राजा होटल के बीच का क्षेत्र राजनीतिक , सामाजिक एवं साहित्य प्रेमियों के बीच लीडराबाद के नाम से जाना जाता है | यहाँ एक से एक धुरन्धर और अजीबोगरीब स्वाभाव के लोग बैठते है | यहाँ बैठने वालो में घर से निराश , टिकट से उपेक्षित , बेलगाम बोलने और अपनी बात मनवाने के आदि लोग है | यद्दपि इस क्षेत्र में उठने बैठने वालो की संख्या नित्य 500 की है लेकिन तीन दर्जन तो ऐसे है और घूम फिर कर तब तक बैठे रहेंगे जो हलवाई की भट्टी सुलगते ही आ धमकते है और घूम फिरकर तब तक बैठे रहेंगे जब तक भट्टी बुझ ना जाए | लीडराबाद से लगी जलपान की आधी दर्जन दुकानों के मालिको ने भी परिस्थिति से समझौता कर ही लिया है | वे किसी को उठने के लिए नही टोकते | यहाँ बैठने और बातचीत में हिस्सा लेने का कुछ अलग ही मजा है लेकिन जो यहाँ सामजस्य स्थापित करने में कभी समर्थ नही हुए वे यहाँ आने से कतराते भी हैं | यहाँ बैठने वालो का स्वभाव और उनकी कार्य शैली निराली है | यदि इनके घर में विवाह ही क्यों न हो , माँ बाप बीमार हो , बीबी नैहर जाने के लिए इनके आने की आस में हो तो भी ये उसे भूलकर एक बार यहाँ आयेंगे जरुर | हाजिरी दर्ज कराने , यहाँ का अनुशासन भी खूब है | इस क्षेत्र की तुलना लखनऊ के काफी हाउस से की जा सकती है लेकिन उसका क्षेत्रफल लीडराबाद के मुकाबले कुछ भी नही है और काफी हाउस में भी वह चीज देखने को नही मिलेगी जो यहाँ मिलती है | यहाँ नियमित बैठने वाले एक सज्जन को खबर दी गयी कि उनके पिताजी की तबियत खराब है | खबर का जबाब था कि ' मैं क्या कोई डाक्टर हूँ '' जबकि यहाँ बैठने वाले शिक्षित है राजनीति में अच्छी पकड है लेकिन है काहिल | अपनी पहल से कोई काम करना इन्हें पसंद नही है | जब लोकसभा विधानसभा का लखनऊ दिल्ली में टिकट बटता है तो ये हजरत वहाँ पहुचने के लिए कंडीडेट ढूढना शुरू करते है लेकिन बीच में कोई मिल गया तो बस यात्रा स्थगित समझिये | इस गलियारे में किसी प्रकरण को पेश करने का अंदाज निराला है | किसी मामले को किस रूप में गढना है | बात को आगे कैसे बढ़ाना है कोई भी यहाँ से सीख सकता है | यहाँ जो कुछ भी नही जानता वह सब कुछ जानता है | जो बहुत कुछ जानता है वह खामोश रहता है | अधिकारियो के स्थानान्तरण और नये अधिकारियो के आगमन का समाचार शासन से पहले यहाँ 'रिले ' हो जाता है | यह भी बता दिया जाता है कि उसकी बिरादरी क्या है और कौन राजनेता उसे यहाँ ले आ रहा है | 
इस क्षेत्र की सबसे बड़ी विशेषता है बैठते है हर दल के लोग लेकिन मत - मतान्तर के वावजूद आपस में कडुवाहट नही होती | कभी - कभी तो मुछो पर सत्ता विपक्ष सब एक हो जाते है | 5 - 6 ऐसे सर्वदलीय व्यक्ति है जो दिन ढलते ही ही एक साथ बैठने के लिए बेचैन रहते है | एक से एक दिव्य विभूतियाँ रहती है यहाँ | सबका मनोरंजन करने वाले स्व राकेश उपाध्याय ने मुझसे कहा कि ''मेरे लायक कोई काम है | '' मैंने कहा ''आप क्या कर सकते है ? उनका जबाब था ''जिसे कहिये बेइज्जत कर दूँ '' इस पर लोग हँसने लगे | राकेश उपाध्याय आजकल नदी के किनारे कुटिया बनाने के लिए बेचैन है और इन्होने इस हेतु जो कमेटी बनाई है उसमे ईट भठ्ठा वाले , सीमेंट और लोहे के विक्रेता है जिससे कही इधर - उधर न भटकना पड़े | लीडराबाद में नियमित बैठने वालो में युवा नेताओं में स्व के .पी . सिंह . स्व भग्गल यादव . त्रियुगी सिंह .एस एन त्रिपाठी . दारा सिंह चौहान चुन्नन राय जवाहर सैनी मुन्ना यादव हरिश्चन्द्रपाण्डेय , जुल्फेकार बेग . स्व तहसीलदार पाण्डेय , अशोक यादव , ज्ञान प्रकाश दुबे , पतिराम यादव , दीना राय , विजयी सिंह , शाह शमीम , स्व सोमेश्वर सिंह , स्व अजित सिंह और गुरु घंटाल देवनाथ भइया प्रमुख है | इन सबसे अलग है विनोद लाल श्रीवास्तव जो यहाँ से उठने के बाद रात 12 बजे तक शहर की सडको को खाँच मारते है | इनको अपना संस्मरण सुनाने का बहुत शौक है | इन लोगो में से यदि लीडराबाद में किसी का दर्शन नही हुआ तो समझिये वह बाहर गया है अथवा गम्भीर रूप से बीमार है | लीडराबाद क्षेत्र में जो भी चाय की जलपान की दुकाने है भठ्ठी सुलगते ही अपनी बड़ी - बड़ी जीर्ण शीर्ण बेंच और मेज खुले आकाश तले रख देते है | वे भी जैसे अभ्यस्त से हो गये है या उन्हें भी इनका बैठना अच्छा लगता है | लखनऊ से आते समय एक बार यहाँ की विभूति विजयी सिंह से मेरी मुलाकात शाहगंज जंक्शन पर हो गयी | मैंने उनसे पूछा ''नेताजी टिकट लिए है की नही '' इन्होने अलकृत भाषा का प्रयोग करते हुए कहा की ''रेल अपनी सम्पत्ति है | यदि मैं टिकट लूँ तो क्या इससे अपनेपन में कमी नही महसुसू होगी |
एक बार . स्व के .पी . सिंह से बात हो रही थी बीच में एक सज्जन ने कहा कि आज कल कोतवाली पुलिस जिसे पकड़ रही है खूब पीट रही है ' के .पी . सिंह का जबाब था ''पुलिस एक विधायक को मजबूत बनाने के लिए ऐसा कर रही है | यहाँ नित्य बैठने वालो के अलावा सैकड़ो ऐसे है जिनका यहाँ आने के लिए पेट फूलता रहता है |                                           प्रस्तुती - एस के दत्ता

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