विधानसभा गेट से जेल तक लगता था मुख्तार का दरबार

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लखनऊ। अपराध से राजनीति में आये मुख्तार अंसारी जेल से चुनाव जीतते रहे और माननीय बनने के साथ ही उनका दरबार लखनऊ में भी खूब लगने लगा। मुख्तार विधानसभा सत्र में हिस्सा लेने जरूर आते थे, इसकी आड़ में ही वह विधानभवन गेट से लेकर जेल के अंदर तक अपने गुर्गों से मिलता था। जेल के अंदर सब कुछ उसके इशारे पर होता था। यही से उसकी सारी डीलिंग तय होती थी और ठेके मैनेज किये जाते थे। पुलिस अफसर ही दावा करते हैं कि जेल के भीतर मुख्तार को सारी सुविधाएं एक इशारे पर मिल जाया करती थी।
सत्र में हिस्सा लेने के बाद मुख्तार जब जेल पहुंचता था तो वहां पहले से ही दर्जनों लोग उससे मुलाकात करने के लिये मौजूद रहते थे। पुलिस अधिकारी ही बताते हैं कि मुख्तार से मिलने जाने वाले शख्स को कोई औपचारिकता नहीं पूरी करनी पड़ती थी। जेल गेट पर मुख्तार का नाम लेते ही उसे सीधे अंदर जाने दिया जाता था। लखनऊ जेल में उसकी तूती बोलती थी। इसको लेकर कई बार मुद्दा गरमाया पर मुख्तार के रुतबे में कोई कमी नहीं आयी।
मुख्तार के लखनऊ जेल में आते ही मुलाकातियों की लम्बी कतारें लग जाती थी। दिनभर मिलने का दौर चलता था और वह भी बिना रोकटोक। जेल अफसरों की भी हिम्मत नहीं होती थी कि उससे कुछ बोले। जेल के ही एक अधिकारी बताते हैं कि ऊपर से ही दबाव रहता था कि मुख्तार पर सख्ती न की जाये। इसके अलावा जेल के कई बंदी रक्षक व अन्य कर्मचारी उसके इशारे पर कुछ भी करने को तैयार रहते थे। यही वजह थी कि लखनऊ के कई गुर्गें मुख्तार से मिलने किसी भी समय पहुंच जाते थे तो उन्हें मिलवा दिया जाता था। मुख्तार की शह पर ही लखनऊ में कई जगह वसूली हुई, कई अन्य घटनायें हुई।
वर्ष 2005 में तत्कालीन एसएसपी आशुतोष पाण्डेय को फोन कर एक घंटे के अंदर कैंट, खदरा और मड़ियांव में तीन गोश्त दुकानदारों की हत्या करने वाले भाइयों सलीम, सोहराब और रुस्तम ने भी मुख्तार का दामन थाम रखा था। सीरियल किलर नाम से चर्चा में आये ये तीनों अपराधी मुख्तार की शह पर लखनऊ में वसूली करने लगे थे। इन पर तीन साल पहले लखनऊ पुलिस ने सख्ती की थी। पर, मुख्तार से इनका सम्बन्ध बना रहा।

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