पराली जलाने पर पर्यावरण कम्पनसेशन के तहत होगी वसूली

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रिपोर्ट-संजीव राय
मऊ। उप कृषि निदेशक सत्येंद्र सिंह चौहान ने बताया कि वर्तमान में धान एवं अन्य फसलों की कटाई एवं मड़ाई का कार्य हो रहा है। धान की कटाई कम्बाइन हार्वेस्टर बिना एस०एम०एस० का प्रयोग किया जा रहा है, जिससे फसल अवशेष / पराली को किसान जला दे रहें, जिसके कारण प्रदूषण, खेतो की उर्वराशक्ति में कमी एवं मानव स्वास्थ्य को हानि हो रहा है। पर्यावरण विभाग के आदेश में निहित प्राविधानों के अन्तर्गत पराली जलाने पर 02 एकड़ से कम क्षेत्र के लिए रू० 2500.00, 02 से 05 एकड़ क्षेत्र के लिए रू0 5000.00 एवं 05 एकड़ से अधिक क्षेत्र के लिए रू० 15000.00 तक पर्यावरण कम्पन्सेशन की वसूली का निर्देश है। जनपद के किसान भाईयों से अपील है कि पराली न जलायें, जिससे कि विषम परिस्थितियों से बचे रहेंगे। जनपद में बिना एस०एम०एस० के कम्बाईन हार्वेस्टर चलते हुए पाये जायेंगे तो उन्हें सीज करने की कार्यवाही की जायेगी। किसान भाई पराली प्रबन्धन के यंत्रो जैसे सुपर सीडर, जिरोट्रिल सीडड्रिल, रिर्वसेबल एम0बी0 प्लाऊ आदि यंत्रो का प्रयोग करें। पराली से खाद बनाने हेतु कृषि विभाग के विकास खण्ड स्तर पर स्थित राजकीय बीज गोदामों पर बायो डीकम्पोजर निःशुल्क उपलब्ध है, प्राप्त कर लें, जिससे कि पराली जलाना न पड़े। जिलाधिकारी के निर्देश के क्रम में पराली जलाने से रोक-थाम हेतु ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम प्रधान, लेखपाल एवं ग्राम पंचायत अधिकारी की कमेटी का गठन किया गया किया है। यदि ग्राम सभा में फसल अवशेष जलाये जाने की घटना होती है, तो सम्बन्धित लेखपाल एवं ग्राम प्रधान तहसील स्तर पर उप जिलाधिकारी को तत्काल इसकी सूचना देंगें।
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