आजमगढ़: कार्तिका पूर्णिमा पर हजारों श्रद्धालुओं ने लगायी आस्था की डुबकी

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महर्षि दुर्वाषा की तपोस्थली पर प्रतिवर्ष लगता है तीन दिवसीय मेला
रिपोर्ट-आरपी सिंह
आजमगढ़। फूलपुर तहसील मुख्यालय से 7 किमी दूर स्थित महर्षि दुर्वाषा की तपोस्थली दुर्वाषा धाम पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाई। इस दौरान श्रद्धालुओं ने मंदिरों में पूजा अर्चना कर अपने और परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। मेले में लोगों ने अपनी जरूरतों के हिसाब से खरीदारी किया। मेला परिसर में जरूरत के सामानों के साथ ही मनोरंजन की भी व्यवस्था है। पुलिस प्रशासन मेला सकुशल संपन्न कराने के लिए लगा रहा।
इस पौराणिक स्थली पर महर्षि दुर्वाषा ने 88 हजार ऋषियों के साथ कठोर तपस्या की थी। लगभग 7 हजार साल तक चली कठोर तपस्या के बाद भगवान शिवजी प्रकट हुए थे। उनकी इसी तपोस्थली पर प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी हजारों श्रद्धालुओं डुबकी लगाने पहुँचे। महिलाओं और बच्चों ने अपनी जरूरत के सामानों की खरीदारी किया। बच्चों और युवाओं के लिए मेला में लगाये गए झूले आकर्षण का केंद्र बने रहे। वहीं घरेलू सामानों की जमकर खरीदारी भी हुई। गुब्बारे, चोटहिया जलेबी, पिपिहिरी, हाथा, फावड़ा, कुदार, श्रृंगार की वस्तुओं की भी खरीददारी हुई। तमसा मंजूषा के संगम पर महिलाओं के लिए समुचित व्यवस्था का अभाव दिखाई दिया। श्रद्धालुओं द्वारा महर्षि दुर्वाषा और शिवजी के दर्शन पूजन किए गए। मंदिरों में बज रहे घंटा घड़ियाल और भक्ति गीतों से पूरा परिसर भक्तिमय हो गया। सुरक्षा की दृष्टि से मेला परिसर से पहले ही पुलिस प्रशासन द्वारा वाहनों को रोका गया। फूलपुर कोतवाल पूरी टीम के साथ मेले की सुरक्षा में लगे रहे। कई जगहों पर लोगों को भीड़ और जाम का भी सामना करना पड़ा। मंगलवार को मेले का आयोजन किया जाएगा।
भागवत पुराण के अनुसार अत्रि मुनि ने पुत्र की प्राप्ति के लिए ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी की कठोर तपस्या की थी। जिसके चलते शिवजी दुर्वाषा के रूप में, ब्रह्मा जी चन्द्रमा के रूप में और विष्णु जी दत्तात्रेय के रूप में अत्रि मुनि और अनुसुइया के पुत्र के रूप में अवतरित हुए थे। वहीं ब्रह्मानन्द पुराण के अनुसार ब्रह्मा और शिवजी के बीच की गरमा गरम बहस देख पार्वती ने शिवजी के साथ रहने से मना कर दिया था। इस दौरान शिवजी ने अपना क्रोध अनुसुइया में समाहित कर दिया था। जिसके चलते सनुसूइया को पुत्र के रूप में दुर्वाषा की प्राप्ति हुई थी।

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