केवल 5000 के स्टांप पर करोड़ों की संपत्ति रजिस्ट्री की सुविधा

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योगी कैबिनेट का फैसला, जानिए किसे मिलेगा फायदा
लखनऊ। यूपी की योगी सरकार ने 5000 रुपये के स्टांप पर संपत्ति की रजिस्ट्री करने की सुविधा एक बार फिर से देने का फैसला किया है। करोड़ों की संपत्ति भी केवल 5000 के स्टांप पर रजिस्ट्री हो सकेगी। संपत्ति अपने ही किसी परिवार के सदस्य को करने पर यह सुविधा मिलेगी। एक संपत्ति पर इस सुविधा का लाभ पांच साल में एक बार ही लिया जा सकता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट की बैठक में यह फैसला हुआ। फैसले के मुताबिक अग्रिम आदेशों तक छूट की यह सुविधा दी जाएगी। बाद में राजस्व और रजिस्ट्री होने वाली संपत्तियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन कर इस छूट को निरंतर किया जा सकता है। भारतीय स्टांप अधिनियम-1899 में दी गई व्यवस्था के आधार पर प्रदेश में दान विलेखों पर संपत्ति मूल्य पर हस्तांतरण पत्र यानी कन्वेंस डीड की भांति स्टांप शुल्क लेने की व्यवस्था है। रजिस्ट्रीकरण अधिनियम के प्रावधानों के अधीन अचल संपत्ति के दान विलेख (गिफ्ट डीड) की रजिस्ट्री अनिवार्य है। प्रस्तावित छूट देने से प्रदेश के अन्य राज्यों की भांति प्रदेश में भी पारवारिक सदस्यों के मध्य दान विलेखों के माध्यम से अचल संपत्ति का हस्तांतरण सहज हो सकेगा, जिससे जनसामान्य को लाभ प्राप्त हो सकेगा।
स्टांप तथा न्यायालय शुल्क पंजीयन राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार रवींद्र जायसवाल के मुताबिक ट्रायल के तौर पर प्रदेश में 18 जून से 17 दिसंबर 2022 तक इस सुविधा का लाभ लोगों को दिया गया था। इस दौरान कुल 309554 संपत्तियों की रजिस्ट्री हुई थी और 252 करोड़ रुपये राजस्व मिला। इस सुविधा से रजिस्ट्री के बेहतर परिणाम देखने को मिले। इसीलिए एक बार फिर से अपनों के नाम पर संपत्ति गिफ्ट करने पर 5000 रुपये के स्टांप पर रजिस्ट्री की सुविधा प्रदान की गई है। परिवार के सभी सदस्यों पुत्र, पुत्री, पिता, माता, पति, पत्नी, पुत्रबधू, सगा भाई, सगे भाई के मृतक होने की दशा में उसकी पत्नी, सगी बहन, दामाद, बेटा व बेटी के पुत्र व पुत्री के बीच संपत्तियों की रजिस्ट्री पर 5000 रुपये स्टांप शुल्क देना होगा। देश के प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश में पारिवारिक सदस्यों के बीच होने वाली गिफ्ट संपत्तियों की रजिस्ट्री पर स्टांप शुल्क में छूट दिया जा रहा है। परिवार के स्वामी, पारिवारिक सदस्यों के पक्ष में वसीयत कर देते हैं। चूंकि स्वामी की मृत्यु के बाद ही वसीयत प्रभावी होती है इसलिए कई बार वसीयत निष्पादित होने के मामलों में विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे में मुकदमेबाजी कम करने के लिए दूसरे राज्यों की तरह यहां भी छूट देने की सिफारिश की गई थी।

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