पाकिस्तान से आया, ठेला लगाया और बना विधायक

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लखनऊ। भाजपा के बुजुर्ग नेता व पूर्व विधायक तुलसीदास रायचंदानी पार्टी के संघर्ष के दिनों के साथी रहे हैं। एक दशक तक अविभाजित गोंडा के जिलाध्यक्ष और दो बार विधायक रहे। कार्यकर्ताओं के लिए लड़ने और साथ खड़े रहने के लिए पहचाने जाने वाले तुलसीदास 86 की उम्र पूरी कर चुके हैं। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के दूसरे और तीसरे चुनाव में बलरामपुर में प्रचार से लेकर अबतक राजनीति के तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। वह कहते हैं, अब राजनीति बहुत बदल गई है।
तुलसीदास बताते हैं, 1957 में पश्चिमी पाकिस्तान से गोंडा आया था। विकट गरीबी का सामना करना पड़ा। ठेले पर फल बेचकर परिवार को आगे बढ़ाया। लेकिन, परिश्रम व ईश्वर की कृपा से सब कुछ प्राप्त हुआ। गोंडा आने के बाद आरएसएस व जनसंघ के संपर्क में आया। फिर भाजपा से जुड़ गया। करीब 11 वर्ष तक भाजपा का जिलाध्यक्ष रहा। इसी दौरान 1991 का चुनाव आया तो पार्टी ने कहा कि चुनाव लड़ाने के साथ लड़ना भी पड़ेगा। जबकि गोंडा सदर विधानसभा क्षेत्र में मेरे समाज के कुछ सैकड़ा वोट ही रहे होंगे।
खुद भी चुनाव लड़ा और अन्य सीटों पर कार्यकर्ताओं को प्रत्याशी बनवाया। तब पार्टी के प्रति समर्पण व समाजसेवा की भावना ही टिकट का पैमाना हुआ करती थी। पूरे जिले में प्रचार करना था। चार पहिया गाड़ी तक नहीं थी। मोटरसाइकिल से प्रचार होता था। आखिरकार उधार लेकर गाड़ी खरीदी। शहर और जिले के कार्यकर्ताओं ने 10, 50, 100 व 1000 रुपये, जितना जिससे बन पड़ा चंदा दिया। इसी बीच चुनाव 10 दिन के लिए स्थगित हो गया। फिर प्रचार के लिए पैसे खत्म। माहौल अच्छा था, लेकिन बिना पैसे के चुनाव गड़बड़ाने का डर लग रहा था। संघ के एक पदाधिकारी ने गोंडा कार्यालय बुलाया। 10 हजार रुपये की मदद की। पार्टी 11 में से 10 सीट जीती।
तुलसीदास बताते हैं, मैं 26 साल का था जब अटल बिहारी वाजपेयी 1962 में बलरामपुर का दूसरा चुनाव लड़ने आए थे। यह उनका दूसरा चुनाव था। इसके पहले वाला चुनाव यहीं से जीत चुके थे। तब बलरामपुर गोंडा का ही हिस्सा था। संघ के जिला प्रचारक घर आए और बलरामपुर प्रचार में चलने को कहा। मैं प्रचार करने गया। उस समय कांग्रेस का जलजला हुआ करता था। अटलजी का प्रचार करने राजमाता विजया राजे सिंधिया आई थीं। कई सभाएं हुई थीं। जिस पोलिंग स्टेशन की मुझे जिम्मेदारी मिली, वहां कांग्रेस का 90 प्रतिशत वोट पड़ता था। इसमें काफी फर्जी वोट होते थे। हमने जाकर कांग्रेस के नेता से कह दिया कि एक भी गलत वोट नहीं पड़ने देंगे। मैं वहीं बैठ गया। 42 प्रतिशत वोट ही पड़ सका। कांग्रेस के वहां के कार्यकर्ता ने मेरे लिए आलू-मटर व चाय मंगाकर नाश्ता कराया और दोपहर बाद चला गया। इसके बावजूद थोड़े वोटों से अटल जी चुनाव हार गए। हम सभी रो रहे थे। अटलजी ने पीठ थपथपाई और कहा बड़ी बहादुरी दिखाई। आज भले हारे, हम जीतकर जाएंगे। 1967 में अटलजी फिर बलरामपुर से लड़े और जीतकर गए।
तुलसीदास बताते हैं, मैं भाजपा का जिलाध्यक्ष था तो उन्हीं दिनों कल्याण सिंह गोंडा आए। यहां लोगों ने मेरी शिकायत की कि मुझे गोंडा जिले के ब्लॉकों की संख्या तक पता नहीं है। कल्याण सिंह ने मंच से ही पूछ लिया। मैंने न सिर्फ संख्या बताई, बल्कि सभी 25 ब्लॉकों का नाम भी बता दिया। कल्याण ने मेरी पीठ ठोंकते हुए शिकायत करने वाले को फटकार लगाई और कहा कि तुलसीदास ने अच्छी मेहनत की है। मैं जिलाध्यक्ष बना रहा। मैंने नेपाल बॉर्डर तक साइकिल और मोटरसाइकिल चलाकर संगठन का काम किया है। फिर 1991 में मेरे जिलाध्यक्ष रहते चुनाव हुआ। गोंडा-बलरामपुर की 11 में से 10 सीटें भाजपा जीती थी। यह हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि थी।

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