मुलायम सिंह के फार्मूले को नए ढंग से आजमाने में जुटे अखिलेश

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यूपी के रण में दिखेगी गठबंधन की ताकत
लखनऊ। गठबंधन की ताकत के मंत्र को बरसों पहले उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने समझ लिया था। इसी फार्मूले को एक बार फिर अखिलेश यादव दोहराने का प्रयास कर रहे हैं।
अखिलेश छोटे दलों को साथ लेने में जुटे हैं। वे छोटे दलों का बड़ा गठबंधन पेश करने जा रहे हैं। सपा की सहयोगी पार्टियां तैयारी में जुट गई हैं। ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर में अखिलेश को बुलाकर रैली कर अपनी ताकत दिखा चुके हैं। सहयोगियों में सबसे ताकतवर रालोद है। जिसके साथ अखिलेश ने गठबंधन फाइनल कर ‘बदलाव की ओर’ का नारा दिया।
पश्चिमी यूपी में यह गठबंधन कृषि कानून की वापसी के ऐलान के बाद बदलते माहौल में कितना कारगर साबित होगा, यह किसान आंदोलन की दिशा व दशा पर भी निर्भर करेगा। आम आदमी पार्टी का कितना असर है यह उसे अभी साबित करना है लेकिन यह पार्टी भी सपा की हमसफर बनने की राह में दिख रही है। कुर्मी वोटों में सेंधमारी के लिए अपना दल कमेरावादी की अध्यक्ष कृष्णा पटेल को सपा ने अपने साथ ले लिया है। अपना दल सोनेलाल के लिए यह गुट चुनौती है।
अखिलेश इस बार यादव फैक्टर को पीछे रख कर गैर यादव पिछड़ी जातियों पर फोकस कर रहे हैं। छोटे दलों के साथ इन जातियों की गोलबंदी कर वह वोट बैंक को 30 तक ले जाने पर काम रहे हैं। सोनभद्र, मिर्जापुर में प्रभाव रखने वाली गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भी सपा के साथ आ गई है।
चुनाव बाद गठबंधन को बनाए रखना चुनौती
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा ने अगर खुद शानदार प्रदर्शन नहीं किया तो उसके लिए आगे कई तरह की मुश्किलें आएंगी। छोटे दल दो-दो, तीन-तीन या इससे ज्यादा सीटें ले आए तो वह भाजपा की ओर जा सकते हैं। सपा के अच्छे प्रदर्शन पर ही गठबंधन की गांठ मजबूत रह सकती है।
जहां तक सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का बात है तो वह भी खुद को एक बेहतर विकल्प के तौर पर जनता के बीच पेश कर रहे हैं और छोटे दलों के साथ गठबंधन कर वह जनाधार को व्यापकता देने की कोशिश कर रहे हैं। छोटे दलों से गठजोड़ रणनीति का अहम हिस्सा है।

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