सवाल पर डीएम ने दी पत्रकार को धमकी

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अगर एक लाइन भी छापी तो लगा देंगे NSA

गोरखपुर। योगीराज में उत्तर प्रदेश के पत्रकारों को काम करना कितना मुश्किल हो रहा है, यह घटना इसका छोटा सा उदाहरण है। दिल्ली के इंडिया टुमारो डाट इन के पत्रकार मसीहुज्जमा अंसारी ने डीएम से बस इतना पूछा कि गोरखनाथ मठ के साथ मुसलमानों के घर और जमीन अधिग्रहण का नोटिस दिया गया है। इस मामले में क्या चल रहा है। उनके घर उनकी मर्जी के खिलाफ क्यों अधिग्रहण किए जा रहे हैं? डीएम ने कहा कि यह पूछना अपराध श्रेणी में आता है। इस सीधे से सवाल का जवाब देने की बजाय डीएम पत्रकार मासिहुज्जमा अंसारी को धमकाने लगे। डीएम ने पत्रकार से कहा कि आप अफवाह क्यों फैला रहे हैं? क्यों मामले को तूल दे रहे हैं। डीएम इतने पर भी नहीं थमे, उन्होंने पत्रकार पर आरोप लगाया कि आप मामले को उलझाना चाह रहे हैं। जिससे हिंदू मुस्लिम विवाद हो सके। मामले को धर्म के नाम पर बंदरबांटी कर रहे हो। डीएम ने कहा कि पत्रकार पहले उन परिवारों से बात करें, जिनके जमीन और घर अधिग्रहण होना है।
पत्रकार बार-बार बोलता रहा कि वह बस सच जानना चाह रहा है। सच क्योंकि डीएम से ही पता चल सकता है, इसलिए वह बात कर रहा है। लेकिन डीएम पत्रकार का नाम पूछ उस पर धर्म विशेष का होने का आरोप लगाते हुए धमकाने लगता है। डीएम पत्रकार को सलाह देता है कि वह धर्म से ऊपर उठकर बात करें। वह यह भी कहता है कि सभी लोग अपने अपने घर और जमीन अपनी मर्जी से दे रहे हैं। उन्हें मुआवजा दिया जाएगा। तो पत्रकार को दिक्कत क्या है? डीएम यह भी जानना चाहता है कि वह मामला उन्हें कहां से मिला? पत्रकार जब जवाब देता है कि उनकी घर के मालिकों से बातचीत हुई है। वह अपने घर और जमीन नहीं देना चाह रहे हैं। इस पर डीएम ने जवाब दिया कि तुम उन्हें उकसा रहे हो, यदि उनका नाम या इस मामले में एक लाइन भी प्रकाशित की तो मामला दर्ज कर लिया जाएगा। डीएम ने दावा कि कि जिन लोगों के घर व जमीन अधिग्रहण करने की योजना है, वह लोग स्वयं उन्हें लिख कर दें गए कि कुछ लोग उन्हें उकसा रहे हैं। जिसमें न कोई डिपार्टमेंट है और न कोई जिम्मेदार इसलिए वह,( डीएम) तुम्हारे (पत्रकार) के खिलाफ मामला दर्ज करा सकता है। डीएम ने कहा की न सिर्फ मामला बल्कि एनएसए भी लगाया जाएगा। डीएम के धमकाने से पत्रकार काफी आहत है। उन्होंने पूरे मामले की जानकारी राष्ट्रीय मानव आयोग को दी है। अब वह मामले को प्रेस परिषद में उठाने के साथ साथ अपने स्तर पर भी उठा रहे हैं। जिस मठ के नजदीक घर और जमीन अधिग्रहण करने की बात चल रही है, यह वहीं मठ है, जिसमें यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ संचालक है। इस मठ की दीवार के साथ एक कब्रिस्तान और मुस्लिमों के दस बारह घर हैं। सरकार मुस्लिमों के घरों को अधिग्रहण करना चाह रही है। क्योंकि यहां एक मेट्रो रेल का स्टेशन बनाया जाना है। मठ और स्टेशन की सुरक्षा के लिए यहां एक पुलिस स्टेशन बनाया जाना है। इसलिए स्थानीय प्रशासन की कोशिश है कि मुस्लिमों के घर और उनकी जमीन का अधिग्रहण कर लिया जाए।
कुछ परिवार अपने घर नहीं देना चाह रहे हैं। इधर प्रशासन की ओर से उन पर दबाव बनाया गया। उनकी मूक सहमति ऐसे कागजों पर ली जा रही है, जिस पर किसी अधिकारी के हस्ताक्षर नहीं है। इन कागजों के आधार पर ही दावा किया जा रहा है कि यह लोग अपनी इच्छा से घर और जमीन देना चाह रहे हैं। पत्रकार मसीहुज्जमा अंसारी जो सवाल पूछ रहा था, वह इसी अधिग्रहण से संबंधित था। गोरखपुर के ही एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अभी यह पूरा प्रोजेक्ट सिर्फ बातचीत पर ही चल रहा है। ऐसा लग रहा है कि प्रशासन जिन घरों को अधिग्रहण करना चाह रहा है, वह पहले अच्छे से तैयारी करनी चाह रहे हैं। जिससे अधिग्रहण की प्रक्रिया जब शुरू हो तो किसी तरह की दिक्कत न आए। इसलिए अभी जो भी काम हो रहा है, वह सरकारी प्रक्रिया के तहत नहीं बल्कि ऑफ द रिकार्ड किया जा रहा है। जो कि किसी भी मायने में सही नहीं ठहराया जा सकता है।
अगले साल यूपी में चुनाव है। चुनाव से पहले योगी सरकार कोई बखेड़ा नहीं चाह रही है। इसलिए घर और जमीन अधिग्रहण करने के मामले में बहुत ही सधे हुए तरीके से काम किया जा रहा है। जिससे जमीन अधिग्रहण भी हो जाए, लेकिन मामला तुल भी न पकड़े। इसलिए मकान मालिकों को डरा कर और लालच देकर उनकी जमीन और घर लेने की कोशिश हो रही है। गोरखपुर का मेन स्ट्रीम मीडिया क्योंकि प्रशासन और सरकार के दबाव में है। इसलिए मामले को उठाया नहीं जा रहा है। इधर सोशल मीडिया प्लेटफार्म और वेबसाइट पर स्थानीय पत्रकार मामले को उठा रहे हैं। उन्हें चुप कराने के लिए प्रशासन उनके खिलाफ मामला दर्ज करने और एनएसए लगाने की धमकी दे रहे हैं। जिससे वह डर कर चुप हो जाए। पत्रकार ने बताया कि वह इस मामले पर चुप नहीं रहेंगे। क्योंकि डीएम ने जिस तरह से उनसे बातचीत की है, वह किसी भी मायने में सही नहीं ठहराई जा सकती है। इनका सवाल है, क्या वह इसलिए उन लोगों की आवाज नहीं उठा सकता, क्योंकि वह स्वयं उस धर्म से हैं। यह तो आपात काल से भी बुरा दौर आ गया है। इस पर चुप रहने का सवाल ही नहीं उठता।

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