बलिया। वर्तमान समय में किसान भाई बसंतकालीन मूंग की खेती की तैयारी में जुटे हुए हैं। यूथ इंडिया टाइम्स द्वारा उन्नतिशील मूंग की फसल के लिए रिसर्च स्कॉलर स्टूडेंट आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रदौगिकी विश्विद्यालय कुमारगंज अयोध्या कल्याण सिंह से की गई बातचीत को आपके समक्ष प्रस्तुत किया गया है ताकि आप इसका लाभ उठा सकें। परिचय:-मूंग जायद ऋतु की एक अत्यंत महत्वपूर्ण दलहनी फसल है। जिसका प्रयोग दाल की फसल के रूप में करने के साथ साथ इसकी फली को तोड़ लेने के बाद ,इस कि फसल को हरी खाद के रूप में भूमि में पलट देने से यह भूमि में हरी खाद के रूप में उपयोग कर ली जाती है जिससे भूमि में नाइट्रोजन तत्व की पूर्ति हो जाती है। मूंग के दानों में 25 प्रतिशत प्रोटीन होने के साथ - साथ आवश्यक खनिज पदार्थ कैलिशयम, फास्फोरस आदि पाए जाते है। भूमि की तैयारी:-मूंग की खेती के लिए प्रायः दोमट भूमि सर्वोत्तम रहती है।। खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले डिस्क हैरो से करने के बाद 2 से 3 जुताई कल्टीवेटर या एक ही जुताई रोटावेटर से करके खेत को समतल कर लेते है। उन्नतशील प्रजातियाँ:- नरेंद्र मूंग-1, मालवीय जागृति (एच.यू.एम-2), सम्राट, मूंग जनप्रिया (एच.यू.एम-6), पूसा विशाल मालवीय ज्योति, मालवीय जून चेतना। यह सभी किस्मे 65-70 दिन में पककर तैयार हो जाती है तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश हेतु संस्तुति की गई है। इन किस्मों में पीला शिरा रोग नहीं लगता है। बुवाई का समय:- बसंतकालीन मूंग की बुवाई का समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है। वही ग्रीष्म कालीन मूंग की बुवाई का समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक बुवाई अच्छा माना जाता है। बीजदर- जायद में प्रायः पौधा काम बढ़ता है इस लिए बीज दर की मात्रा थोड़ा बढ़ा लेते हैं। प्रायः जायद में 20-25 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। बीज शोधन:- बीज को बुवाई से पूर्व बीजशोधन किसान भाई अवश्य करें। ट्राईकोडरमा विरिडी नामक दवा 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजशोधन करने के बाद ही खेत मे बुवाई करें। जिससे जमाव अच्छा होता है साथ ही साथ रोग एवं कीटों का प्रकोप काम होता है। बुवाई की विधि:- मूंग की बुवाई प्रायः पंक्तियों में ही करें । पंक्ति से पंक्ति की दूरी प्रायः 25-30 सेंमी रखें । पौधे से पौधे की दूरी प्रायः 10-15 सेंमी रखें। बीज प्रायः 4 सेंमी से अधिक गहराई पर बुवाई न करें। उर्वरक की मात्रा:- सामान्यतः उर्वरको का प्रयोग मृदा जांच के बाद ही करें। 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस , एवं 20 किलोग्राम पोटाश, 20 किलोग्राम सल्फर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। यदि सुपर फॉस्फेट उपलब्ध हो तो फास्फोरस की जगह 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। शेष अंक अगले अध्याय में पढ़े।