आजमगढ़ : पंचतत्व में विलीन हुए डोम राजा

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पन्द्रह फुट ऊंची सजी चिता पर हुआ दाह-संस्कार
तीन दशक से संभाल रहे थे श्मशान घाट की जिम्मेदारी
रिपोर्ट : वेद प्रकाश सिंह 'लल्ला'
आजमगढ़। पिछले तीन दशक से नश्वर शरीर को त्याग गोलोकधाम को प्रस्थान करने वाली दिवंगत आत्माओं की चिताओं को अग्नि प्रदान करने वाले शहर के राजघाट श्मशान की जिम्मेदारी संभालने वाले डोम राजा अरविंद चौधरी शनिवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। श्मशान घाट पर सजी पन्द्रह फुट ऊंची चिता पर पारंपरिक तरीके से उनका दाह संस्कार किया गया।
गाजीपुर जिले के सादी- भाई गांव के मूल निवासी रहे डोम राजा 60 वर्षीय अरविंद चौधरी वर्ष 1997 में जिले में आए। उन्होंने सर्वप्रथम सिधारी स्थित नए पुल के नीचे अपना ठिकाना बनाया और शवों के दाह-संस्कार में अपनी सेवा देने लगे। वर्ष 2001 में जनविरोध के कारण शहर से गुजरने वाली तमसा नदी के किनारे विभिन्न स्थानों पर किए जाने वाले दाह-संस्कार कार्यक्रम को बंद कर राजघाट स्थित श्मशान भूमि को शवों के दाह-संस्कार कार्य के लिए उपयुक्त माना गया और डोम राजा अरविंद चौधरी ने उक्त श्मशान घाट को अपनी कर्मस्थली बनाया। तभी से वह अपने परिवार के साथ दाह-संस्कार कार्य को संपन्न कराते रहे। पिछले चार सालों से वह शारीरिक रूप से बिमार हुए और तभी से वह उपचाराधीन थे। परिवार वालों के अनुसार जिले में निवास करते हुए उन्होंने अपने तीन पुत्र व तीन पुत्रियों की शादियां कर पिता की भूमिका का बखूबी निर्वहन किया। शुक्रवार की रात उनकी हालत गंभीर होने पर उन्हें उपचार के लिए शहर के नीजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां शनिवार की सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन का समाचार मिलते ही उनके राजघाट स्थित आवास पर रिश्तेदारों व शुभचिंतकों के आने का क्रम शुरू हो गया। उनके समाज की परंपरा के अनुसार कि डोम समाज में किसी का निधन होने पर उनके यहां दिवंगत आत्मा को लकड़ी और सफेद दुशाला (सफेद चादर) समर्पित करने की परंपरा का निर्वाह किया गया। रिश्तेदार एवं समाज के लोगों द्वारा अर्पित की गई लकड़ी, फूल और रंगोली से सजाई गई लगभग 15 फुट ऊंची चिता को प्रज्वलित कर उनका दाह-संस्कार किया गया। इस मौके पर तमाम लोग मौजूद रहे।

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