आजमगढ़: फेल हुआ भाजपा का ‘मेरा बूथ सबसे मजबूत मिशन’

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मंत्री, एमएलसी, क्षेत्रीय अध्यक्ष सहित कई दिग्गज हारे अपना बूथ

आजमगढ़। भाजपा ने मेरा बूथ सबसे मजबूत नाम से एक अभियान चलाया था। इस अभियान का मकसद भाजपा को संगठनात्मक रूप से मजबूत करना था। जिले में संगठन की मजबूती को लेकर भाजपा के बड़े-बड़े पदाधिकारियों के साथ-साथ आरएसएस के पदाधिकारियों ने बैठक कर आजमगढ़ की बंजर भूमि को उर्वरा बनाने की कोशिश की। लेकिन, अंततरू भाजपा नेतृत्व इसमें कामयाब नहीं हुआ। भाजपा के बडे नेताओं के बेड़े में लग्जरी गाड़ियां और लोग जरूर शामिल हुए, पर अपने बूथों पर भी यह नेता भाजपा की लाज नहीं बचा पाए। यही कारण है कि भाजपा से ज्यादा इंडिया गठबंधन के प्रत्याशियों को दोनों लोकसभा सीटों पर मत मिले और भाजपा को आजमगढ़ और लालगंज सीट पर करारी हार का सामना करना पड़ा। लोकसभा चुनाव से पूर्व बड़ी संख्या में सपा, बसपा के नेता भाजपा में शामिल हुए थे पर यह नेता सिर्फ अपने को सुरक्षित कर पाए पार्टी के लिए कोई करिश्मा नहीं कर पाए। यही कारण है कि इन नेताओं के बूथों पर भी पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। जिले की 10 विधानसभा सीटों के अन्तर्गत आने वाली आजमगढ़ और लालगंज दोनों लोकसभा क्षेत्रों की पांचों विधानसभाओं में भाजपा सपा से काफी पीछे रही है। राजनाथ सिंह के करीबी एमएलसी रामसूरत राजभर के बूथ पर भाजपा को 15 वोट आजमगढ़ जिले की फूलपुर पवई विधानसभा से 2022 के विधानसभा में चुनाव लड़ने वाले रामसूरत राजभर विधानसभा का चुनाव हार गए। विधानसभा का चुनाव हारने के बाद भाजपा ने राम सूरत राजभर को विधान परिषद का सदस्य बना दिया। 2024 के लोकसभा चुनाव में रामसूरत राजभर के मक्खापुर गांव के बूथ संख्या 272 पर भाजपा की प्रत्याशी नीलम सोनकर को मात्र 15 वोट मिले जबकि इंडिया गठबंधन को 272 वोट मिले वहीं बसपा प्रत्याशी डाक्टर इंदु चौधरी को 163 वोटे मिले हैं। वहीं 271 नंबर बूथ पर भाजपा को 343 वोट जबकि सपा को 104 वोट और बसपा को सात वोट हासिल हुए। दल बदलने में माहिर माने जाने वाले आजमगढ़ जिले के गेलवारा के रहने वाले माने दारा सिंह चौहान भी अपना बूथ नहीं जितवा पाए। प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री दारा सिंह चौहान के गेलवारा के बूथ नंबर 242 पर भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को 283 वोट जबकि सपा प्रत्याशी को 655 वोट मिले। जबकि दूसरे बूथ 243 पर भाजपा को 212 और सपा को 244 वोट मिले। दारा सिंह चौहान सपा छोड़कर ही भाजपा में शामिल हुए थे। मऊ जिले के घोसी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा ने प्रत्याशी बनाया था जहां की जनता ने नकार दिया। बावजूद इसके भाजपा ने कैबिनेट मंत्री पद से नवाजा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह मौसमी नेता अपने बूथों को लेकर कितना गंभीर हैं। आजमगढ़ जिले के रहने वाले सहजानंद राय का कद भले ही पार्टी में चाहे जितना बड़ा हो गया है। पर 2024 के लोकसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा में वह भी फेल हो गए। सहजानंद राय के पैतृक गांव पूरब पट्घ्टी में भाजपा प्रत्याशी नीलम सोनकर को 153 वोट जबकि सपा प्रत्याशी को 229 वोट मिले। जबकि बूथ नंबर चार पर भाजपा को 167 वोट जबकि सपा को 241 वोट मिले। इससे समझा जा सकता है कि जमीनी स्तर पर कितना काम हुआ। भाजपा के पूर्व विधायक अरूणकांत यादव के दीदारगंज विधानसभा क्षेत्र के प्राथमिक विद्यालय सरांवा के दोनों बूथों क्रमशः 12 और 13 पर भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। बूथ नंबर 12 पर भाजपा को 168 वोट जबकि सपा को 330 वोट हासिल हुए। वहीं बूथ नंबर 13 पर भाजपा को 40 और सपा को 262 वोट हासिल हुए। इससे समझा जा सकता है कि क्षेत्रीय विधायक पार्टी की मजबूती को लेकर कितना गंभीर हैं। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे राम नरेश यादव के बेटे अजय नरेश के बूथ पर भी भाजपा हार गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में लोकसभा चुनाव लड़ने का सपना देख रहे अजय नरेश छह अप्रैल को लखनऊ में भाजपा में शामिल हुए थे। भाजपा में शामिल होने के बाद अपने पक्ष में माहौल भी बना रहे थे। इसको लेकर फूलपुर विधानसभा क्षेत्र में बधाई देने वाली होर्डिंग और बैनर भी लगवाया गया था। 25 मई को हुए चुनाव में अजय नरेश के गांव आंधीपुर में बनाए गए बूथ संख्या 188 पर भाजपा प्रत्याशी नीलम सोनकर को 182 वोट जबकि सपा को 215 वोट मिले। वहीं बूथ नंबर 189 पर भाजपा को 209 जबकि सपा को 230 वोट मिले। अजय नरेश के बड़े भाई कमलेश यादव सपा प्रत्याशी के साथ प्रचार करते नजर आए। ऐसे में समझा जा सकता है कि लोकसभा का चुनाव लड़ने की बात करने वाले अजय नरेश अपने बूथ पर कितने मजबूत हैं। आजमगढ़ की गोपालपुर विधानसभा सीट पर 2022 में भाजपा प्रत्याशी रहे सत्येन्द्र राय भी अपना बूथ नहीं जितवा पाए। जिले के भदुली में बूथ संख्या 244 पर भाजपा को 53 वोट जबकि सपा को 691 वोट मिले जबकि बूथ संख्या 245 पर भाजपा को 268 और सपा को 403 वोट मिले। इससे समझा जा सकता है कि जिले के बड़े-बने नेता अपने बूथ पर किस तरह से कमजोर साबित हुए जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है।

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