फाल आर्मी वर्म से बचाव हेतु कृषकों के मध्य व्यापक प्रचार-प्रसार एवं जनजागरुकता हेतु एड्वाइजरी

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रिपोर्ट-सरदार रोशन सिंह
पीडीडीयू नगर (चंदौली)। प्रदेश की जलवायु फाल आर्मी वर्म के लिए अनुकूल होने के कारण विगत कुछ वर्षों से प्रदेश के कई जनपदों में फाल आर्मी वर्म कीट का प्रकोप देखा जा रहा है।यह कीट एक बहुभोजी कीट है जो मक्का के साथ-साथ अन्य फसलों जैसे-ज्वार,बाजरा,धान,गेहूँ तथा गन्ना आदि फसलों को भी भारी क्षति पहुँचा सकता है।अतःइस कीट की पहचान एवं प्रबन्धन की सही जानकारी कृषकों को होना अत्यन्त आवश्यक है।
पहचानःइस कीट की मादा ज्यादातर पत्तियों की निचली सतह पर अण्डे देती है, कभी-कभी पत्तियों की ऊपरी सतह एवं तनों पर भी अण्डे दे देती है।इसकी मादा एक से ज्यादा पर्त में अण्डे देकर सफेद कीटमल से ढक देती है।अण्डे हल्के पीले(क्रीम कलर)या भूरे रंग के होते हैं।
फाल आर्मी वर्म समान्य सैनिक कीट से भिन्न है। इसका सूँड़ी भूरे,धूसर रंग की होती है तथा इसके पार्श्व में तीन पतली सफेद धारियों और सिर पर उल्टा अंग्रेजी अक्षर का वाई दिखता है।शरीर के दूसरे अंतिम खण्ड पर वर्गाकार चार गहरे बिन्दु दिखाई देते है तथा अन्य खण्डों पर चार छोटे-छोटे बिन्दु समलम्ब आकार में दिखते है।क्षति का स्वरूपः
इस कीट की प्रथम अवस्था सूंडी(लार्वा)सर्वाधिक हानिकारक होती है। सामान्यतःयह कीट बहुभोजी होता है लगभग 80 फसलों पर अपना जीवन चक्र पूरा कर सकता है,जिसमें मक्का, बाजरा,ज्वार,धान,गेहूँ एवं गन्ना प्रमुख है।परन्तु मक्का इस कीट की रुचिकर फसल है।चारा,शाक,सूर्यमुखी, बन्दगोभी,फूलगोभी आदि फसलों को भी क्षति पहुँचा सकता है।यह कीट फसल की लगभग सभी अवस्थाओं में हानि पहुँचाता है।यह कीट मक्का के पत्तियों के साथ-साथ बाली को भी प्रभावित करता है।इस कीट का लार्वा मक्के के छोटे पौधों के गोप के अन्दर घुसकर अपना भोजन प्राप्त करता हैं। इस कीट के प्रकोप की पहचान फसल की बढ़वार अवस्था में पत्तियों में खिड़कीनुमा छिद्र बनाता है एवं साथ ही साथ पत्तियों के बाहरी किनारों पर भी क्षति पहुंचाता है। पत्तियों के ऊपर महीन भूसे के बुरादे जैसा उत्सर्जी प्रदार्थ अधिक मात्रा में छोड़ देता है।
प्रबन्धनःफसल की नियमित निगरानी एवं सर्वेक्षण करें,प्रकोप की दशा में जनपद के विभागीय अधिकारियों को तत्काल सूचित करें,प्रकोप दिखाई देने पर सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली के व्हाट्सएप नम्बरों कमशः 9452247111 एवं 9452257111 पर फोटो खीचकर भेजे जिसका समाधान 48 घण्टे के अन्दर किया जायेगा,अण्ड परजीवी जैसे ट्राइकोग्रामा प्रेटिओसम अथवा टेलीनोमस रेमस के 50000 अण्डे प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करने से इनकी संख्या की बढ़ोत्तरी में रोक लगायी जा सकती है,यांत्रिक विधि के तौर पर सांयकाल(7 से 9 बजे तक)में 3 से 4 की संख्या में प्रकाश प्रपंच एवं 8 से 10 की संख्या में बर्ड पर्वर प्रति एकड़ लगाना चाहिए,फाल आगी वर्म के अण्डे इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए,प्रारम्भिक अवस्था में पौधों की गोप में रेत एवं बुझा चूना को 9ः1 के अनुपात में मिलाकर बुरकाव करने से इस कीट के लार्वा का प्रकोप कम हो जाता है,5 प्रतिशत पौध तथा 10 प्रतिशत गोप क्षति की अवस्था में कीट नियंत्रण हेतु एन०पी०वी० 250 एल०ई० अथवा मेटाराइजियम एनिसोप्ली 5 ग्राम प्रति लीटर पानी(2.50 किग्रा० प्रति हे०)अथवा वैसिलस थुरिनजैनसिस(ठज) 2 ग्राम प्रति लीटर पानी (100 किग्रा० प्रति हे०)अथवा व्यूवैरिया वैसियाना 250 किग्रा० प्रति हे० की दर से प्रयोग करना लाभकारी होता है।इस अवस्था में नीम ऑयल 5 मिली० प्रति लीटर पानी (2.50 लीटर प्रति हे०)में घोल बनाकर छिड़काव करने से भी कीटों की संख्या पर नियंत्रण किया जा सकता है,10-20 प्रतिशत क्षति की अवस्था में रासायनिक नियंत्रण प्रभावी होता है।इस हेतु क्लोरेन्ट्रानिलीप्रोल 18.5 प्रतिशत एस०सी० 0.4 मिली० प्रति लीटर पानी (200 मिली० प्रति हे०)अथवा इमामेक्टिन बेनजोइट 0.4 ग्राम प्रति लीटर पानी(200 ग्राम प्रति हे०)अथवा थॉयोमेथाक्सॉम 2.6 प्रतिशत लैम्ब्डासाइहैलोथ्रिन 9.5 प्रतिशत की 0.5 मिली० मात्रा प्रति लीटर पानी (250 मिली० प्रति हे०) की दर से घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

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