बिना पेड़ काटे बना दिया तीन मंजिला मकान, देखें शानदार 'ट्री हाउस' की तस्वीरें

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बरेली। आज के दौर में जहां एक तरफ कॉलोनियां और मकान बनाने के लिए हरियाली पर अंधाधुंध आरी चल रही है, दूसरी ओर बरेली शहर में कई ऐसे भी पर्यावरण प्रेमी हैं, जिन्होंने तीन मंजिला मकान तैयार कर लिया मगर पेड़ नहीं काटे। मकान का पूरा नक्शा पेड़ के मुताबिक कर लिया। पेड़ की छांव में बने ये शानदार मकान ट्री हाउस बन गए हैं। लोग इन मकानों की बनावट देखते रह जाते हैं।


रामपुर गार्डन में डॉ. रेणुका अग्रवाल और उनके पति डॉ. सागर ने प्लॉट लेकर वहां अस्पताल का निर्माण कराने के लिए नक्शा बनवाया। नीचे अस्पताल और प्रथम व द्वितीय तल पर मकान बनना था, मगर इसी प्लॉट में 40 फुट ऊंचा कदंब का पेड़ था। डॉ. रेणुका बताती हैं कि अस्पताल और घर दोनों का नक्शा नहीं बन पा रहा था। ऐसे में उन्होंने पेड़ कटवाने का फैसला किया मगर उनकी सास ऊषा अग्रवाल ने उन्हें ऐसा करने से रोका।

ऊषा ने कहा कि वैसे ही पूरे शहर में पेड़ कट रहे हैं। नक्शा बदलो, मगर पेड़ के साथ ही मकान बनवाएंगे। इसके बाद नक्शा नए सिरे से बनवाया गया। इसमें अस्पताल में भी जगह कम करनी पड़ी। ऊपर मकान के दोनों मंजिल पर एक-एक कमरे कम हुए, मगर उन्हें पेड़ को बचाने का संतोष है। पेड़ अब तीसरी मंजिल तक पहुंच गया है और पूरे मकान पर उसकी शीतल छाया रहती है।

विनय खटवानी ने राजेंद्र नगर आवास विकास कॉलोनी में महंगा प्लॉट खरीदा। उसमें आम का एक पेड़ था। पहले उसे काटने की बात हुई और उसी आधार पर मकान का नक्शा बनवाया गया। मगर विनय उस पेड़ को बचाकर मकान बनवाना चाहते थे। आर्किटेक्ट ने कहा कि पेड़ नहीं काटा गया तो पार्किंग के लिए जगह नहीं बचेगी। प्रथम व द्वितीय तल पर एक-एक कमरे कम बनेंगे और लॉबी भी छोटी करनी पड़ेगी।
विनय ने पेड़ के साथ रहने का विकल्प चुना और उसी हिसाब से मकान का नक्शा बदला गया। वह कहते हैं कि हम पेड़ों को बचाते हुए अच्छा निर्माण कर सकते हैं। वर्तमान में पेड़ पर फल भी आ रहे हैं।
रामपुर गार्डन में डॉ. प्रदीप रायजादे ने घर के बाहर फूलों की बेल लगाई। जब वे बड़ी हुईं उन्होंने पूरी बेल अपने भवन पर ही चढ़ा ली। आज वह पूरे भवन को अपने आगोश में समेटे हुए हैं। सड़क से उनके मकान का सिर्फ गेट और एक तरफ का हिस्सा दिखाई देता है, बाकी बेल ने ढक लिया है। पर्यावरण प्रेम के चलते उन्होंने कभी इसे काटा, छांटा नहीं।
मठ की चौकी निवासी शमा गुप्ता ने 1995 में एक पौधा रोपा था। शौक जुनून में बदला तो उन्होंने घर में ही गार्डन तैयार कर लिया। आज सैंकड़ों किस्म के पौधे उनके घर में है। उन्होंने बताया कि वह 25 साल से गार्डन का रखरखाव कर रही हैं। पिछले कुछ साल से कार्पेट घास लगवाती हैं। इसकी देखरेख अधिक करनी पड़ती है। इस पर चलते हैं तो लगता है जैसे किसी कार्पेट पर चल रहे हों। इस घास को अक्तूबर-नवंबर में ही लगाना चाहिए। इसके अलावा गार्डन और उनकी छत पर तीन सौ से अधिक गमलों में अलग-अलग किस्म के पौधे लगे हैं। वह कहती हैं कि बागवानी उनकी दिनचर्या का अहम हिस्सा है। फूलों पर जब तितलियां आकर बैठती हैं, गिलहरी घूमती दिखाई देती है तो काफी सुकून मिलता है।

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