आजमगढ़: खुले आसमान तले रहने को मजबूर हुए पीएम आवास वाले

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पहली किश्त के बाद भूल गया जिम्मेदार विभाग
रिपोर्ट-वेद प्रकाश सिंह ‘लल्ला’
आजमगढ़। केन्द्र व प्रदेश सरकार भले ही गरीब परिवारों को प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत पात्र लोगों का चयन कर आवास से लाभान्वित करने का मन बनाया और उसे धरातल पर उतारने में जुट गई, लेकिन जिम्मेदार विभाग उसके मंसूबे पर पलीता लगा रहे हैं। संबंधित विभाग की जमीनी हकीकत कुछ और नजर आने लगी है। इसका प्रमाण नवगठित नगर पंचायत जहानागंज में देखा जा सकता है। नगर पंचायत क्षेत्र में सैकड़ों आवास विहीन लोगों का चयन कर उन्हें पात्रता सूची में शामिल किया गया। लगे हाथ सभी पात्र लोगों के बैंक खाते में आवास की पहली किश्त के रूप में 50 हजार रुपए भी भेज दिया गया। रकम प्राप्ति के बाद पात्रों के चेहरे खिले और सभी अपने घरौंदे ढहाकर आवास निर्माण में जुट गए। सभी के मन में यह बात रही कि चुनावी साल होने के कारण शीघ्र ही शेष रकम खाते में आ जाएगी और आवास का सपना पूरा हो जाएगा। इसके लिए जिम्मेदार विभाग लगता है अब दूसरी किश्त भेजना भूल गया है। आवास बनवाने वाले लोग भवन निर्माण सामग्री का व्यवसाय करने वालों से कुछ समय के लिए उधार सामान लेकर नींव का निर्माण तो कर लिए लेकिन दूसरी किश्त न मिलने से अब उनका सपना अधूरा साबित होने लगा है। दुकानदार भी अब उधार दिए गए सामान के भुगतान के लिए उन गरीबों के दरवाजे सुबह शाम पहुंच कर तगादा कर रहे हैं। अचानक आई इस समस्या ने उन लोगों की नींद उड़ा दिया है जिन्होंने अपना पुराना आशियाना उजाड़कर नए आवास में शीघ्र प्रवेश करने की जुगत में लगे थे। लोगों को अब यह नहीं समझ में आ रहा कि वह क्या करें। प्लास्टिक का छप्पर डालकर रह रहे परिवार सरकार की नाइंसाफी के चलते खुले आसमान तले रहने को मजबूर हैं।सर्दी के मौसम ने उनकी हालत और पतली कर दिया है। देखना है कि कब तक सरकार इन मजबूर लोगों की पीड़ा को संज्ञान में लेती है। हैरानी की बात यह कि अब तो लोग संबंधित विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों पर दूसरी किश्त से पहले सुविधा शुल्क मांगे जाने का गंभीर आरोप लगा रहे हैं। नाम न छापने की शर्त पर एक पीड़ित ने सर्वेयर पर आरोप लगाते हुए कहा कि मुझसे पहली किश्त के नाम पर 6 हजार रु माँगा गया था लेकिन हमने नहीं दिया। शायद यही कारण है कि तीन माह बीत जाने के बाद भी दूसरी क़िस्त के लिए भटक रहा हूँ। उन्होंने यह भी कहा कि मैं ठेले पर सामान बेचकर परिवार का जीवन-यापन करता हूँ। उसका कहना है कि हम पांच बच्चों समेत इस समय प्लास्टिक के छप्पड़ में रहने को मजबूर हैं।

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