जैव विविधता का संरक्षण एवं संवर्धन वर्तमान और भविष्य की जरूरत - कल्याण सिंह

Youth India Times
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रिपोर्ट-अशोक जायसवाल


बलिया। जैव विविधता के संरक्षण एवं संवर्धन के सम्बन्ध में यूथ इंडिया टाइम्स की कल्याण सिंह, गोल्ड मेडलिस्ट/रिसर्च स्कॉलर से बातचीत के अंश।

प्रस्तावना -पृथ्वी की धरा पर मानव जीवन तथा उसके सभ्यता एवं संस्कृति के अस्तित्व में आने के क्रम से लेकर उसके उत्तरोत्तर विकास के क्रम में इस धरा पर अनेक सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के साथ साथ अनेक संकल्पना ओं का सृजन विकास एवं विनाश हुआ जो कहीं ना कहीं मानव के स्वार्थ से वशीभूत होकर उनमें सामंजस्य ना बनाने के फल स्वरुप ही उसके विनाशकारी परिणाम उसको समय-समय पर भुगतने पड़े इससे अतीत के साथ-साथ वर्तमान तथा आने वाला भविष्य भी अछूता नहीं दिखाई दे रहा है इस धरा पर व्याप्त समस्त प्रकृति पद्धत वस्तुएं मानव को मुफ्त उपहार में उसके उपभोग तथा संरक्षण हेतु प्रदान की गई हैं परंतु उसके अत्याधुनिक तथा अनियमित विदोहन से समय-समय पर भयावह संकट मानव के सामने दृष्टिगत होते रहते हैं मनुष्य अपने आसपास व्याप्त जैव विविधता तथा पर्यावरण का सदियों से उपयोग एवं उपभोग करता आ रहा है तथा उसके जीवन के हर अंग में प्रकृति तथा पर्यावरण द्वारा प्रदत वस्तुओं का अत्यंत ही महत्वपूर्ण सहयोग रहा है अतः का अत्यंत ही महत्व कारी मानव का यह कर्तव्य बनता है कि हम उसके प्रति भी सचेत तथा कर्तव्य भावना के साथ उसकी सेवा संरक्षण तथा संवर्धन जरूर करें परंतु वर्तमान परिवेश इससे एकदम उलट है मानव तथा उसकी मानवता इस कदर बदल चुकी है कि उसके अपने उपभोग तथा जीवन के आगे पर्यावरण तनिक भी नहीं सूझ रहा है जबकि उस पर ही मानव का पूरा जीवन निर्भर है
परंतु जब इस अभिन्न अंग पर्यावरण तथा जैव विविधता में मानव ने सामंजस्य तथा संतुलन को खो दिया जिसके परिणाम स्वरूप उसके भयावह परिणाम इस धरा पर कभी अत्यधिक सूखा वर्षा तूफान आधी बाढ़ तथा अनेक विनाशकारी परिणामों के रूप में समय-समय पर दृष्टिगत होता है या कहीं ना कहीं मानवीय चूक तथा उसके स्वार्थ का ही परिणाम है कि हम प्रकृति के मार का दम झेल रहे हैं इस प्रकृति पद्धति वस्तुओं का उचित संवर्धन तथा संरक्षण ना होने के कारण भारत एक जैविक संपदा संपन्न देश हुए होते हुए भी पर्यावरण के हानिकारक प्रभाव से अछूता नहीं है
"प्रकृति को जब हम सवारेंगे ,तो खुद ही सवरं जाएंगे ।
प्रकृति को जब हम उजाड़ेंगे, तो खुद ही उजड़ जाएंगे
नीति खुद से कहीं ऐसा न बना लें हम ,
कि कहीं अगर प्रकृति, रूठ गई तो हम बिखर जाएंगे,।।
कल्याण
चुकीं मनुष्य इस धरा का सर्वाधिक बुद्धिमान व सशक्त प्राणी है अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ साथ इस धरा पर उपस्थित विभिन्न जीव जंतुओं के साथ-साथ विभिन्न पेड़ पौधों के बीच सामंजस्य तथा उनका कुशल क्षेम जाना ना तथा उसे सही रखना उसका नैतिक कर्तव्य है अगर यह विविधता ऐसे ही बनी रहे तो निश्चित थी या मानव के लिए कल्याणकारी होगी परंतु अगर यह विविधता किन्ही कारणों से परिवर्तित तथा नष्ट होती है तो निश्चित ही उसके भयावह परिणाम मानव जीवन पर वर्तमान के साथ-साथ भविष्य में भुगतने को तैयार हो जाना चाहिए।
जैव विविधता के अंतर्गत अनुवांशिक विविधता जातीय विविधता तथा पारिस्थितिक विविधता का का अध्ययन के साथ-साथ उसके संरक्षण तथा संवर्धन के प्रति मानव को सचेत तथा जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अगर अनुवांशिक विविधता जो प्राचीन के कारण उत्पन्न होती है जिसके अंतर्गत विभिन्न विभेद की अनेक जातियां में अनेक महत्वपूर्ण जीन उपस्थित होते हैं अगर आंकड़ों पर गौर किया जाए तो भारत में धान के 50,000 से अधिक विभेद तथा आम की 1000 से भी अधिक किसमें हैं यही अनुवांशिक विविधता है इसके साथ साथ जातीय विविधता तथा पारिस्थितिक विविधता भी मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है भारत एक विविधता संपन्न देश होने के कारण ही विश्व की कुल जैवविविधता में उसकी हिस्सेदारी 8% है तथा साथ ही साथ विश्व के 12 महा जैवविविधता देशों में शामिल है परंतु इतना सब कुछ होने के बावजूद भी जय विविधता का क्षरण निरंतर जारी है जिसके भैया व परिणाम वर्तमान परिवेश में अत्यधिक पीड़ा दाई हैं जैव विविधता की छाती मानव के विकास के बाद प्रजाति विलुप्त ई करण की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं साथ ही साथ ब्लू पति करण के नए-नए कारण सामने आए हैं इसका प्रमुख कारण यह है कि जैव संसाधनों का अत्यधिक व अविवेकी पूर्ण तरीके से दोहन हो रहा है अभिलेखों के अनुसार उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर ई दीपू में रहने वाले 2,000 से अधिक मूल देशज पक्षी प्रजातियां वहां के उन्होंने जेसन के कारण विलुप्त हो गई विलुप्त प्रजातियों व संकटग्रस्त प्रजातियों के आंकड़े प्रकाशित करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज की लाल सूची के अनुसार पिछले 500 वर्षों में कुल 784 प्रजातियों ने सदा के लिए पृथ्वी को अलविदा कह दिया है इन विलुप्त प्रजातियों में 338 पृष्ठ धारी जंतु 359 उधारी जंतु तथा 87 पादप प्रजातियां हैं अगर पिछले 20 वर्षों में देखा जाए तो 87 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं तथा आईयूसीएन के आंकड़ों के अनुसार 15500 पतियों पर ब्लू पति का खतरा मंडरा रहा है अगर आंकड़ों का स्पष्ट रूप से अध्ययन किया जाए तो उदय चोरों की 32% स्तनधारियों की 23% पक्षियों की 12% तथा अनावृतबीजी पौधों की 31% प्रजातियां विलुप्त करण का खतरा दिखाई दे रहा है।
जैव विविधता के अंतर्गत अनुवांशिक विविधता, जातीय विविधता तथा पारिस्थितिक विविधता का समाहित है। अतः उसके संरक्षण तथा संवर्धन के प्रति मानव को सचेत तथा जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि अगर अनुवांशिक विविधता जो जीन के कारण उत्पन्न होती है जिसके अंतर्गत विभिन्न विभेद की अनेक जातियां में अनेक महत्वपूर्ण जीन उपस्थित होते हैं ।
अगर आंकड़ों पर नजर डालें हम तो भारत में धान के 50,000 से अधिक विभेद तथा आम की 1000 से भी अधिक किस्में हैं यही अनुवांशिक विविधता है। इसके साथ साथ जातीय विविधता तथा पारिस्थितिक विविधता भी मानव जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है
भारत एक विविधता संपन्न देश होने के कारण ही विश्व की कुल जैव विविधता में उसकी हिस्सेदारी 8% है तथा साथ ही साथ विश्व के 12 महा जैव विविधता देशों में शामिल है परंतु इतना सब कुछ होने के बावजूद भी जैवविविधता का क्षरण निरंतर जारी है जिसके भयावह परिणाम वर्तमान परिवेश में अत्यधिक पीड़ादाई हैं । मानव के विकास के बाद प्रजाति विलुप्ति करण की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं साथ ही साथ विलुप्ति करण के नए-नए कारण सामने आए हैं इसका प्रमुख कारण यह है कि जैव संसाधनों का अत्यधिक व अविवेकी पूर्ण तरीके से दोहन हो रहा है अभिलेखों के अनुसार विलुप्त प्रजातियों व संकटग्रस्त प्रजातियों के आंकड़े प्रकाशित करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर एंड नेचुरल रिसोर्सेज की लाल सूची के अनुसार पिछले 500 वर्षों में कुल 784 प्रजातियों ने सदा के लिए पृथ्वी को अलविदा कह दिया है इन विलुप्त प्रजातियों में 338 पृष्ठधारी जंतु 359, अपृष्ठधारी जंतु तथा 87 पादप प्रजातियां हैं अगर पिछले 20 वर्षों में देखा जाए तो 27 प्रजातियां विलुप्त हो गई हैं । आईयूसीएन के आंकड़ों के अनुसार 15500 प्रजातियों पर समाप्त होने का खतरा मंडरा रहा है अगर आंकड़ों का स्पष्ट रूप से अध्ययन किया जाए तो उभयचर की 32% ,स्तनधारियों की 23%, पक्षियों की 12% ,तथा अनावृतबीजी पौधों की 31% प्रजातियां पर विलुप्त होने का खतरा दिखाई दे रहा है।।



जैव विविधता की क्षति के प्रमुख कारण-



प्राकृतिक आवासों का नाश्ता या प्राकृतिक आवासों का टुकड़ों में बांट जाना- मानव जनसंख्या में क्रमशः वृद्धि होने के कारण तथा प्राकृतिक क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप के कारण जीवो के प्राकृतिक आवास विशेषता वर्षा वन तथा कोरल रीफ का नाश हुआ है पिछले वर्षो में इसमें काफी इजाफा हुआ है ।आवासीय क्षेत्रों ,कृषि क्षेत्रों ंतथा औद्योगिक क्षेत्रों में निरंतर वृद्धि के कारण वर्षा वनों का क्षेत्रफल बहुत कम रह गया है ।विशाल अमेजन वर्षा वन पशुओं के चारों के लिए काट कर साफ कर दिया गया इससे वर्तमान प्रवेश भी अछूता नहीं है बक्सवाहा जंगल जिसमें की 3.42 करोड़ कैरेट के हीरे 2.5 लाख हैक्टेयर भूमि काटकर निकाले जाने की प्रक्रिया चल रही है जिसके अंतर्गत 62 हेक्टेयर जंगल चिन्हित किए गए हैं जबकि 382 हेक्टेयर जंगल को साफ करने की कवायद चल रही है जो वर्तमान के लिए एक बहुत बड़ा संकट अस्पष्ट इंगित हो रहा है इस जंगल में एक हीरे की खदान खोज हुई है परंतु इससे प्राकृतिक आवास भी प्रभावित होगा परंतु मानव को इसकी चिंता तनिक भी नहीं सता रही है जो आने वाले समय में अत्यंत दुख दुखदाई एवं पीड़ा दाई साबित हो सकता है।इस हीरे की खाद्यान्न के लिए करीब करीब ढाई सौ हेक्टेयर भूमि में ज्ञापित विशाल बन को समाप्त करने की प्रक्रिया चल रही है जिससे लाखों प्रजातियां प्रभावित होंगी और इनका अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा एक समय में इस धरा पर वर्षा बंद पृथ्वी के 14% भाग पर पाए जाते थे जो अब सिमटकर मात्र 6% रह गए हैं अमेजन के वन को पृथ्वी के फेफड़े कहे जाते हैं। वर्तमान परिवेश में औद्योगिकरण शहरीकरण तथा व्यापारिक गतिविधियों के कारण भी प्राकृतिक आवासों का विनाश हुआ है इसके साथ साथ अति दोहन सभ्यता तथा विदेशी जातियों का आक्रमण तथा आगमन भी मूल प्रजातियों के विनाश के प्रमुख कारण है
जैव विविधता का संरक्षण्ं- प्रजातियों के विलुप्त करण तथा उनके निवास स्थानों में होने वाले क्षति को रोकना अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य है इस दिशा में हम सभी को मिलकर कार्य करना होगा तब जाकर ही इसके उचित संरक्षण तथा संवर्धन के लिए सामूहिक प्रयास किया जा सकता है विश्व के कुछ सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्रों को संरक्षण कर्ताओं ने जैव विविधता हॉटस्पॉट बनाया है जिसमे प्रजातियां पाई जाती हैं अब तक कुल 34 हॉटस्पॉट बनाए जा चुके हैं भारत में लगभग 19 बायोस्फीयर रिजर्व 100 से अधिक राष्ट्रीय पार्क तथा 500 से भी अधिक वन्यजीव अभ्यारण की स्थापना की गई है इसके अतिरिक्त लगभग 50 संरक्षण रिजर्व कुछ सामुदायिक रिजर्व व रामसर स्थल भी स्थापित किए गए हैं जिनसे की जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में कार्य चल रहा है इसके साथ साथ आज जरूरत है मानव को भी कि अपने सामूहिक प्रयासों से पर्यावरण के बी के प्रति सचेत तथा जागरूक रहना अत्यंत आवश्यक है इस कड़ी में मानव को सामाजिक वानिकी तथा कृषि वानिकी के सिद्धांतों को अपनाना चाहिए सामाजिक वानिकी के अंतर्गत तथा कृषि वानिकी के अंतर्गत मानव को सभी तथा आर्थिक महत्व वाले पौधों का सफल रोपड़ जरूर करना चाहिए राष्ट्रीय वन नीति 1952 के अनुसार पृथ्वी पर 33% वन भाग होना चाहिए परंतु आज वर्तमान परिवेश में मात्र 21 परसेंट के आसपास वन क्षेत्रों का विकास हो पाया है अतः जरूरत है इन क्षेत्रों में सामूहिक रूप से कार्य करने की इसके साथ-साथ अफॉरेस्टेशन को बढ़ावा देने दूसरी तरफ डिफॉरेस्टेशन पर सामूहिक रूप से लगाम लगाने की तब जाकर ही हम एक वातावरण अनुकूल जीवन की कर सकते हैं।

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