आजमगढ़: ‘जो जर्रा यहां से उठता है, वह नैयरे आजम होता है’
By -Youth India Times
Thursday, April 22, 2021
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नहीं रहें आजमगढ़ की शान मौलाना वहीदुद्दीन खान आजमगढ़। मशहूर इस्लामी विद्वान मौलाना वहीदुद्दीन खान का जन्म आजमगढ़ जिले की निजामाबाद तहसील के बड़हरिया गांव में एक जमींदार परिवार में एक जनवरी 1925 में हुआ था। दिल्ली में बुधवार की रात तबीयत बिगड़ने के बाद 96 साल की उम्र में इनका इन्तकाल हो गया। उनके निधन की खबर से बड़हरिया गांव में शोक व्याप्त है। हर कोई उनकी उपलब्धि का बखान कर रहा है। वहीदुद्दीन के पिता फरीदुद्दीन खान एक जमींदार थे। मौलाना वहीदुद्दीन खान तीन भाइयों में दूसरे नम्बर पर थे। बड़े भाई अब्दुल अजीज खान का आजमगढ़ शहर में मोतियों का कारोबार था। वह मोतियों को विदेश भेजते थे। छोटे भाई अब्दुल मोहीद की तालीम बीएचयू से हुई और वह पॉलीटेक्निक कालेज फैजाबाद के प्रिंसिपल के पद से रिटायर हुए। वहीदुद्दीन जिले के मशहूर वकील, निजामाबाद के पूर्व विधायक व शायर मौलाना इकबाल सुहैल के चचा जात भाई थे। यह वही शायर हैं। जिनका मशहूर शेर ‘जो जर्रा यहां से उठता है, वह नैयरे आजम होता है’ सबकी जुबान पर है। मौलाना वहीदुद्दीन खान की प्राम्भिक शिक्षा बड़हरिया में घर पर हुई। उसके बाद मदरस्तुल इस्लाह सरायमीर में दाखिल हुए। वहां से तालीम के लिए रामपुर चले गए। रामपुर से दिल्ली गये और पूरी जिंदगी वहीं गुजार दी। बड़हरिया गांव में मौलाना वहीदुद्दीन के मोरीसे आला जियाउद्दीन खान के नाम से चल रहे स्कूल के प्रबंधक डॉ. अहमद शफी अंसारी बताते हैं कि मौलाना पांच जबानें जानते थे। उर्दू, हिंदी, अंग्रेजी, फारसी और अरबी। इन जबानों में लिखते और बयान देते थे। अंग्रेजी उन्होंने बाद में सीखी थी। शुरू में उन्होंने अंग्रेजी नहीं पढ़ी थी। लेकिन अपनी जहानत के बल पर अंग्रेजी में भी महारत हासिल कर ली। वह बताते हैं कि मौलाना 2016 में आजमगढ़ आये थे और बड़हरिया गांव स्थित जियाउद्दीन खान मेमोरियल सीनियर सेकेंड्री स्कूल के गेस्ट हाउस में रात गुजारी थी। उनके स्वागत के लिए स्कूल में एक कार्यक्त्रम का भी आयोजन किया गया था। बड़हरिया गांव की उनकी पूरी संपत्ति घर व जमीन स्कूल के लिए वक्फ है और उनकी हवेली स्कूल प्रांगण में स्थित है। मौलाना दिल्ली में इस्लामी मरकज के चैयरमैन और माहनामा रिसाला के संपादक थे। सन 1967 से 1974 तक अल जमीयत वीकली के संपादक रहे। मौलाना के बड़े लड़के जफरुल इस्लाम दिल्ली के अल्पसंख्यक आयोग चैयरमैन रह चुके हैं। छोटे बेटे सायनस नैन पब्लिकेशन हाउस चलाते हैं। छोटी बेटी प्रो.फरीदा खानम जामिया इस्लामिया विश्विद्यालय में अरबी विभाग में कार्यरत हैं।