किसी फरिश्ते से कम नहीं हैं समाजसेवी वर्षा

Youth India Times
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4 हजार से अधिक लावारिस शवों का कर चुकी हैं अंतिम संस्कार
गरीबों, मजबूरों की मददगार, निःशुल्क चलाती हैं एम्बुलेंस
लखनऊ। लखनऊ की वर्षा वर्मा ने 4,500 लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है। उनकी ‘एक कोशिश ऐसी भी’ की शुरुआत तब हुई जब उम्र केवल 14 साल थी। स्कूल से घर लौटने के बाद जहां बाकी बच्चे खेलने कूदने में व्यस्त हो जाते, वहीं वर्षा अपने भाई-बहनों के साथ बुजुर्गों की सेवा करतीं। कभी पैर दबाना तो कभी लकवाग्रस्त को अपने हाथों से भोजन कराना। परास्नातक वर्षा वर्मा एक सम्पन्न परिवार से हैं। उनके पति पीडब्ल्यूडी में एक्सईन हैं। यही कोई पांच छह साल पहले ऐसे ही समाजसेवा करते हुए किसी ने एक बेसहारा बुजुर्ग महिला के बारे में बताया। महिला के दोनों पैरों में गैंगरीन था। उनका इलाज करवाया और 95 फीसदी वह ठीक भी हो गईं। इसी बीच वर्षा एक दुर्घटना का शिकार हो गईं। चार पांच दिन अपना इलाज कराया। इस बीच बिना किसी देखरेख के बुजुर्ग महिला की हालत बिगड़ने लगी। वर्षा ने उनको बचाने के लिए कई डॉक्टरों से संपर्क किया। जब बुजुर्ग महिला की मौत हो गई तो उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। यहीं से शुरुआत हुई जो लगातार जारी है।
वर्षा वर्मा का नाम तब लोगों की जानकारी में आया जब कोविड के समय लोग अपनों से ही दूरी बनाने लगे। करीब 400 से अधिक ऐसे लोग जो अच्छे परिवार से थे। किसी की कोठी किसी का अपना दो मंजिला मकान। बावजूद इसके कोविड से मृत्यु के बाद भाई, बेटा या दामाद छूने तक को तैयार नहीं थे। वर्षा ने ऐसे सभी शवों का अंतिम संस्कार किया। कोविड काल में ही उन्होंने निशुल्क एम्बुलेंस सेवा शुरू की। साथ ही गरीबों की मददगार भी हैं। कई ऐसे लोगों की मदद की जिनका कोई अपना नहीं था। कई बड़े अफसर या सेठ के बच्चे जो अभिभावकों के गुजर जाने के बाद मुफलिसी के शिकार हो गए, उनकी मदद कर जीवन की मुख्य धारा में लौटाने में वर्षा मददगार बनीं।

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