लेखपाल, कानूनगो और पेशकार ने मिलकर लूट ली सरकारी जमीन

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गोरखपुर। गोरखपुर में लेखपाल, कानूनगो और पेशकार ने मिलकर कई एकड़ सरकारी जमीन की वरासत करा ली।मामला सदर तहसील क्षेत्र के जंगल डुमरी नंबर दो से जुड़ा है। तहसीलदार सदर का कहना है कि तहसीलदार न्यायिक के पेशकार ने फर्जी खतौनी लगाकर वरासत कराया है। तहसीलदार सदर विरेन्द्र कुमार गुप्ता ने बताया कि उनको सदर तहसील का चार्ज लिए अभी 20 से 25 दिन ही हुआ था कि ये फाइल पेशकार मेरे सामने ले आया। उस फाइल में बनर्जी परिवार के वारिसों का शपथ पत्र और लेखपाल शैलेष चंद और तत्कालीन कानूनगो घनश्याम शुक्ला की रिपोर्ट भी लगी हुई थी। इसके साथ ही फाइल में तहसीलदार न्यायिक के पेशकार गिरिजेश ने जो खतौनी लगाई गई थी उसमें बनर्जी परिवार की जमीन को ग्राम सभा में निहित किए जाने का कोई आदेश नहीं था।
नाम चढ़ने के बाद पेशकार ने दूसरी खतौनी फाइल में लगाई जिसमें जमीन के ग्राम सभा में जाने का जिक्र था। उसे देख मैंने तत्काल वरासत के आदेश को निरस्त कर दिया लेकिन उसका आदेश पेशकार ने खतौनी में नहीं चढ़वाया। मामला जब सामने आया तब उसे तत्काल प्रभाव से खतौनी में चढ़वाया गया। इस मामले में तीनों से स्पष्टीकरण भी तलब किया गया था।
जंगल डुमरी में 26 एकड़ सरकारी जमीन का वरासत किए जाने के मामले में डीएम द्वारा गठित दो सदस्यीय टीम ने बुधवार से जांच शुरू कर दी। मुख्य राजस्व अधिकारी और अपर जिलाधकारी नगर ने तहसील जाकर तहसीलदार और पेशकार का बयान दर्ज कर लिया है। टीम को दो दिन के अंदर रिपोर्ट डीएम को सौंपनी है। दरअसल, कोलकाता निवासी अतुलकृष्ण बनर्जी, केदारनाथ मुखर्जी, शैलेंद्रनाथ मुखर्जी, लक्खी देवी के नाम भटहट ब्लाक के जंगल डुमरी नंबर दो पर करीब 26 एकड़ से अधिक जमीन दर्ज थी। इस जमीन को 2019 में ग्राम सभा में निहित कर दिया गया था। उसके बाद नगर निगम को आवंटित किया गया। नगर निगम को किया गया आवंटन कुछ दिन बाद निरस्त करते हुए वेटनरी कालेज के नाम दर्ज कर दी गई। मई 2022 में अचानक इस जमीन की वरासत कर दी गई यानी जमीन दो मूल खातदारों के पुत्रों के नाम कर दी गई। सरकारी कार्यों के लिए जमीन की खोज के दौरान 2019 में इस बात का पता चला कि पश्चिम बंगाल में रहने वाले कुछ लोगों की यहां जमीन है। कुछ लोग पावर आफ अटार्नी के आधार पर जमीन बेच रहे थे। तत्कालीन ज्वाइंट मजिस्ट्रेट गौरव सिंह सोगरवाल ने मामले की जांच के लिए एक टीम कोलकाता भेजी थी। टीम की रिपोर्ट में यह पता चला कि अधिकतर मूल खातेदारों की मृत्यु हो चुकी है। एक खातेदार जीवित थे लेकिन किसी खतरे की आशंका से यहां आने को तैयार नहीं थे। टीम की रिपोर्ट के बाद बैनामे पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई और इस जमीन को लावारिस घोषित करते हुए ग्राम सभा में निहित कर दिया गया। उसके बाद 2022 में अचानक से वारिस आ गए और जमीन फिर उनके नाम हो गई। जुलाई में दोबारा से नाम खारिज कर सरकारी संपत्ति घोषित कर दी गई।

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