आजमगढ़: आस्था का केंद्र बना चन्नाराम मां कालिका का मंदिर

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शारदीय व वासंतिक दोनों नवरात्र में होती है अपार भीड़
रिपोर्ट-जगन्नाथ पाण्डेय
आजमगढ़। मुख्यालय से 25 किलोमीटर उत्तर आजमगढ़ गोरखपुर मार्ग पर अजमतगढ़ ब्लाक के धनछुला स्थित चन्नाराम मां कालिका का मंदिर क्षेत्र आस्था का केंद्र बना है। शारदीय व वासंतिक दोनों नवरात्र में यहां अपार भीड़ होती है। हर श्रद्धालु की मिन्नतें यहां पर पूरी होती हैं। कालिका मां यहां वरुण वृक्ष में वास करती हैं। यह स्थान आजमगढ़-गोरखपुर राजमार्ग पर ताल सलोना के किनारे स्थित है। भक्तों का जहां आना-जाना बारहों माह लगा रहता है। यहां शादी, उपनयन संस्कार, धार्मिक अनुष्ठान, नवरात्र में हवन आदि बड़ी श्रद्धा से चलता रहता है।


पर्यटन केंद्र-प्रदेश की भाजपा सरकार ने इस स्थान को विकसित करने के लिए दस लाख रुपये दिए हैं। यहां सफाई का पहले से समुचित स्थान बना है। एक बड़ी जगह है जिसमें सारा कूड़ा रखा जाता है। बाद में अन्यत्र उचित स्थान पर निस्तारित किया जाता है। इससे यहां नियमित सफाई अच्छी रहती है।

इतिहास-लगभग 600 वर्ष पूर्व राजस्थान प्रांत के दो राजसी भाई धन्नी व मन्नी देशाटन को गोरखपुर के रास्ते नेपाल जा रहे थे। रास्ते में यहां वीरान जंगल में रमणीक स्थल विश्राम के लिए रुके। धन्नी ोसह मां की प्रतीक प्रतिमा साथ में लिए थे। यहां वरुण वृक्ष के नीचे प्रतिमा रख पूजा-अर्जन करने लगे। मां की प्रेरणा से यहीं रुकने का निर्देश हुआ। तभी से यहां पूजा का कार्य प्रारम्भ हुआ। बताया जाता है कि मां यहां साक्षात रुप में है। इनका स्थान बदलने, मंदिर बनवाने का कई प्रयास हुआ। यहां पर भयंकर सांप व बिच्छू निकलने लगे। अंततरू उनका स्थान खुले में वरुण वृक्ष के नीचे रखा गया। वहां बने चबूतरे से सटाकर मंदिर का निर्माण हुआ। कालांतर में यहां पर धनछुला गांव का उद्भव हुआ। दूसरे भाई मन्नी ोसह ने मनियर (बलिया) में जाकर मां के मंदिर का निर्माण कराया। 1901 में पुजारी शेखरज जो रंगून रहते थे। निसंतान दम्पत्ति को मां की प्रेरणा से पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। पांच रुपये से मां के चबूतरे का निर्माण कराया। स्व.पुजारी रामगति ोसह फौज में नौकरी करते थे। उन्हें भी पुत्र नहीं था। मां के आशीर्वाद से सोलह वर्ष बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। 1968 में इन्होंने स्वामी स्वतंत्रतानंदजी के विमर्श से भिक्षाटन करके मंदिर का निर्माण कराया। यहां 1971 में सहस्त्र चंडी यज्ञ हुआ।

वर्तमान पुजारी रणविजय सिंह संस्थापक पुजारी स्व.पुजारी रामगति सिंह के भतीजे हैं, जो उनके जीवन काल में ही पुजारी का कार्य संभाल लिए। बताया कि नवरात्र की अष्टमी में यहां लोग विशेष अनुष्ठान करते हैं। बारह माह यहां भक्त आते हैं। नवरात्र में अपार भीड़ होती है जो आस्था का प्रमुख केंद्र है।

रामचन्द्र शर्मा उपाध्याय (नेपालीजी) जो मूलतः नेपाल के रहने वाले हैं। संस्कृत विद्यालय में अध्यापक हैं। स्व.पुजारी रामगति सिंह के सानिध्य में रहे। मां की सेवा में ऐसे रम गए कि संकल्प लिया कि दोनों नवरात्र आकर जीवनपर्यंत मां की पूजा सेवा करुंगा। वे लगातार 1971 से यहां आते हैं। बताया, मां के दरबार में हर मुरादें पूरी होती हैं। यहां आकर श्रद्धा से मांगने वाला कभी खाली हाथ नहीं जाता है। ऐसा प्रमाण यहां मिला है। वर्तमान नवरात्र पर नेपाली बाबा के शिष्य नेपाली अमूल जी पंडित द्वारा दुर्गा पाठ किया जा रहा है।
मान्यता है कि धनीराम के नाम से धनछुला आजमगढ़ और मनीराम के नाम से मनियर बलिया जाना जा रहा है ।जो भी भक्त मन्नतें मांगता है वह मां कालिका पूरी करती हैं ।यह आज शक्तिपीठ के रूप में श्रद्धा का केंद्र बन गया है। जब मंदिर का निर्माण कराया जा रहा था तो चबूतरे के पास तमाम सर्प और बिच्छू निकल आए और निर्माण नहीं हो सका ।इसके उपरांत निवर्तमान पुजारी रामगती सिंह ने काशी के प्रख्यात विद्वान ज्योतिषी, बुलाकर पूजा पाठ कराया और मां कालिका का चबूतरा बट वृक्ष के नीचे आज भी पूजनीय है। बगल में मंदिर का निर्माण कराया गया।
धनछुला मां कालिका मंदिर पर आज विगत 4 वर्षों से जमसर गांव के राणा प्रताप राय उर्फ सोनू द्वारा लंगर प्रसाद की व्यवस्था कराई जाती रही है। आज भी चल रहा है। मंदिर पर भव्य गेट का निर्माण भी कराया गया जो लोग भी श्रद्धा भक्ति से ध्यान करते हैं उनकी मनोकामना पूरी होती है। नवरात्रि के पर्व पर मेला जैसा दृश्य होता है। सभी दुकाने नारियल चूंदरी फल फूल कि सज जाती है। इससे काफी लोगों का रोजी रोटी चलती है। इसी गांव के ही रामाश्रय राय समाजसेवी ने समय समय पर आर्थिक रूप से मध्य करते रहे। है।

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