40 मिनट का 16 हजार बिल, कंधा देने के लिए 7 हजार

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कार्रवाई नहीं होने पर रोज-रोज नए कारनामे की बानगी पेश कर रहे हैं निजी अस्पताल संचालक
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फटकार का भी नहीं रह गया डर, एम्बुलेंस से लेकर घाट तक लग रही बोली
वाराणसी। हद है, अब तो निजी अस्पताल वालों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फटकार का भी डर नहीं रह गया है। निजी अस्पतालों की करतूतों को सुनकर रूह कांप जा रही है, लेकिन निजी अस्पताल वालों का कलेजा नहीं पसीज रहा है। आपदा को अवसर में तब्दील किए बैठे निजी अस्पताल संचालकों पर कार्रवाई नहीं होने से वह रोज-रोज नए कारनामे की बानगी पेश कर रहे हैं।
बिजली विभाग में कार्यरत विनायका निवासी मनीष श्रीवास्तव की माता शोभा श्रीवास्तव लगातार उल्टी और दस्त होने के कारण वह बहुत कमजोरी महसूस कर रहीं थीं। पारिवारिक डॉक्टर के सलाह पर मनीष ने कोरोना की जांच करवाई तो रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। उसके बाद उनकी माता को सांस लेने में तकलीफ होने लगी। भर्ती करने के लिए मनीष और उनकी पत्नी ने शहर के हर अस्पताल का चक्कर लगाया। सभी जगहों से ना होने के बाद उनके एक रिश्तेदार ने टेंगड़ा मोड़ स्थित काव्या मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में बात किया। जहां डॉक्टरों ने एक दिन का 16 हजार खर्च बताया। जान बचानी थी सो मनीष को 16 हजार भी कम समझ आया और अस्पताल में भर्ती करवा दिया। भर्ती करने के बाद वह कुछ अन्य जरूरी सामान लेने के लिए बाजार में आ गए। लगभग आधे घण्टे बाद वह वापस पहुंचे तो जो नजारा दिखा उसे देखकर वह सन्न रह गए। उनकी माता को लगा ऑक्सीजन निकालकर डॉक्टरों ने किसी दूसरे मरीज को लगा दिया था।
यह देख मनीष की भृकुटि तनी लेकिन मां की जान जो बचानी थी। खैर उन्होंने डॉक्टरों से पूछा तो उन्होंने कहा कि दरअसल यह ऑक्सीजन इसी मरीज के लिए रखा गया था। आप आए तो सोचा कि थोड़ा देर आपके मरीज को और फिर थोड़े देर दूसरे मरीज को लगा दिया जाएगा। यह सुनकर मनीष अपने को काबू में नहीं कर पाए। फिर डॉक्टरों ने कहा कि आप चाहें तो अन्यत्र ले जा सकते हैं। जब मनीष ने डिस्चार्ज पेपर बनाने को कहा तो उनके सामने 40 मिनट के भर्ती के लिए 16 हजार का कच्चा बिल प्रस्तुत कर दिया गया। अब माताजी की जान बचाने के लिए पं. दीनदयाल अस्पताल पहुंचे। खैर कोई उपाय लगाकर माताजी को भर्ती करने में वह सफल हुए। जांच-पड़ताल के बाद डॉक्टरों ने कहा कि रेमडेसिविर का डोज देना पड़ेगा। जो उपलब्ध नहीं है। उन्होंने जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा को मैसेज किया। तो डीएम साहब ने रिप्लाई दिया बताया कि जिला अस्पताल में रेमडेसिविर उपलब्ध है। मैं अभी वहां के डॉक्टरों से बात करता हूं।
डीएम साहब के कहने के बावजूद जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने शोभा श्रीवास्तव को रेमडेसिविर नहीं लगाया। रात में मनीष के एक मित्र ने जायडस कंपनी का एन्टी वायरल ड्रग दिया। कई बार कहने के बाद जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने उसे लगाया। खैर रात बीत गयी। अगले दिन सुबह माताजी का ऑक्सीजन लेवल 45 हो गया। कई बार गुहार लगाने के बाद डॉक्टरों ने एक मृत मरीज का हाइपोक्सिया मॉनिटर मशीन लगाया। मनीष को लगा कि शायद अब माताजी की जान बच जाएगी। लेकिन यह तो उल्टा हो गया। थोड़े देर बात जब मनीष की माताजी ने सांस लेना बंद कर दिया तो वह डॉक्टरों को बुलाए तो डॉक्टरों ने कहा कि यह मशीन खराब थी। हमारे पास और कोई व्यवस्था नहीं थी। हम आपके माताजी की जान नहीं बचा सके। हद तो तब हो गई जब मैंने शव को हरिश्चंद्र घाट ले जाने के लिए एम्बुलेंस के अंदर का नजारा देखा। एक ही एम्बुलेंस में दो शव ठूंस दिए गए।
बात यहीं खत्म नहीं होती। एम्बुलेंस से शव उतारने के बाद जब मनीष घाट का रुख किए तो वहां कोविड वाले शव का दाह संस्कार करने के लिए सात हजार देना पड़ा। फिर घाट पर मुखिया ने पूछा कि आप तो दो लोग हैं। दो और लोगों की आवश्यकता होगी कंधा देने के लिए। खैर आप चिंता न करें। सात हजार रुपये और दे दीजिए। हम दो लड़कों को लगा दे रहे हैं। 15 सीढ़ी और एक सौ मीटर दूरी तक कंधा देने के लिए उन दो लड़कों ने सात हजार ले लिया।

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