कैसी सपा चाहते हैं अखिलेश... बड़ा सवाल

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वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा के बीच परंपरागत वोटरों की नाराजगी अखिलेश को पड़ सकती है भारी
-मोहम्मद असलम
आजमगढ़। यह तो अब पूर्णतया साबित हो रहा है कि यह मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी नहीं है, अगर मुलायम सिंह यादव की होती तो शायद न शिवपाल उपेक्षा के शिकार होते और न ही आजम खां को नाराजगी भरा संकेत देना पड़ता। इतना ही नहीं मजबूत सहयोगी दल अगर किसी बिंदु पर सुझाव देते हैं जो उन्हें दबाव डालकर उनका बयान उनसे वापस लेने पर मजबूर किया जाता है। उम्मीद भरी नजरों से देख रहा आज का युवा बेरोजगार नौजवान, शिक्षक कर्मचारी भी यह कहते नजर आ रहे हैं कि आखिर अखिलेश कैसे खुद को सत्ता में वापस लाएंगे। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि उनका प्रमुख वोट यादव और मुसलमान भी उनकी राजनीतिक कार्यशैली को समझ नहीं पा रहा है जिसके कारण उनके मूल वोटरों में फूट पड़ने की प्रबल संभावना बन रही है।

बीते विधानसभा चुनाव से लेकर चुनाव परिणाम आने तक समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की गतिविधियों ने जनता के बीच काफी यक्ष प्रश्न छोड़ दिया है। चुनाव परिणाम आने के बाद सपा में शिवपाल यादव की उपेक्षा और शिवपाल की भाजपा से बढ़ती नजदीकियों ने समाजवादी पार्टी के राजनीतिक खेमें में हलचल मचा दी थी, जिसके कारण शिवपाल यादव को बयान देकर अपनी सफाई देनी पड़ी। इसके बाद मामला थोड़ा शांत हुआ। इस घटनाक्रम को लेकर अखिलेश यादव अपनी सफाई नहीं दे सके जिसके कारण उन पर उंगलियां उठने लगी। चट्टी चौराहों पर यह चर्चा होने लगी कि आखिरकार राष्ट्रीय अध्यक्ष किस तरह की सपा बनाना चाहते हैं।

हाल ही में जमानत पर छूटे कभी मुलायम सिंह यादव के दाहिना हाथ रहे समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता व पार्टी के फाउंडर मेंबर रामपुर विधानसभा के विधायक आजम खान ने जेल से छूटने के बाद मीडिया को दिए गए बयान में जिस तरह अपनी नाराजगी का संकेत दिया। वह समाजवादी पार्टी के लिए घातक हो सकता है। उनके द्वारा यह कहना कि मुझे अपनों के द्वारा ही नुकसान पहुंचाया गया है तो क्या उनकी लिस्ट में सपा मुखिया का नाम भी तो नहीं है यह बड़ा सवाल है, क्योंकि 27 महीना जेल में रहने के दौरान सपा मुखिया ने एक बार भी उनसे मिलने की जहमत नहीं की। मुलायम सिंह के बाबत मीडिया द्वारा पूछे गए सवाल के बाद आजम खान का यह कहना कि हो सकता है मुलायम सिंह यादव के पास मेरा मोबाइल नंबर न हो, उनकी सफा संरक्षक के प्रति नाराजगी दर्शाता है।

अगर सपा के सहयोगी दलों की बात करें तो सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने गत दिनों सपा मुखिया को एसी से बाहर आकर जनता की समस्याओं के प्रति संघर्ष करने की सलाह दी थी, संभवत यह सलाह होने अच्छी नहीं लगी। परंतु यह बात सत्य है कि आज प्रदेश का युवा बेरोजगार नौजवान अखिलेश यादव की तरह आज भी उम्मीद की नजरों से देख रहा है परंतु समाजवादी पार्टी के अंदर चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को देख वह अपने आप को काफी हताश महसूस कर रहा है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटरों में भी अखिलेश यादव की कार्यशैली को लेकर नाराजगी देखी जा रही है।
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी संभालने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में अथक प्रयास करने के बाद भी वह अपनी सरकार नहीं बचा पाए। विगत 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीटें बढ़ाने के बावजूद भी अखिलेश यादव सत्ता से दूर रहें।इस तरह यह कहना कि 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को जो कामयाबी मिली थी वह मुलायम सिंह यादव और उनके सहयोगियों के मेहनत की देन थी गलत न होगा। ऐसे में मुलायम सिंह के बाद उन्हें अपना नेता मान लेने वाले वोटरों के बीच भी उनकी कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। लोग मुखर होकर अखिलेश यादव पर उंगली उठाने लगे हैं ऐसी स्थिति में आने वाले दिनों में भी उनकी कठिनाइयां बढ़ने की संभावनाएं प्रबल दिख रही हैं। ऐसी स्थिति में अगर अखिलेश यादव ने अपनी कार्यशैली पर पुनर्विचार ने किया तो समाजवादी पार्टी का ऊंट किस करवट बैठेगा यह निश्चित कर पाना बड़ा मुश्किल है।

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