अखिलेश-जयंत ने मिलाए हाथ, घंटों चली मुलाकात

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लखनऊ। राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रमुख जयंत चौधरी ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्घ्यमंत्री और समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव से मुलाकात की। दोनों ने अपने ट्वीटर हैंडल से मुलाकात की तस्वीर साझा करते हुए जो कहा, उससे कयास तो यही लगाए जा रहे हैं कि दोनों दलों के बीच गठबंधन को लेकर बात बन गई है। लेकिन अगर यह गठबंधन होता या सीटों को लेकर सहमति बन जाती है तो उससे होगा क्या? इस गठबंधन के मायने क्या होंगे और क्या इससे सत्ताधारी पार्टी भाजपा को नुकसान पहुंच सकता है? इसी साल मार्च में मथुरा में जयंत चौधरी और अखिलेश यादव ने कहा था कि वे 2022 का विधानसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ेंगे। लेकिन उस घोषणा के बाद कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी। इसके बाद अक्टूबर में प्रियंका गांधी और जयंत की मुलाकात के बाद भी काफी चर्चा हुई। प्रियंका गोरखपुर से कांग्रेस की प्रतिज्ञा यात्रा खत्म करके दिल्ली लौट रही थीं और लखनऊ में उसी दिन जयंत संकल्प पत्र जारी कर दिल्ली जाने की तैयारी में थे। दोनों नेताओं की मुलाकात लखनऊ के चौधरी चरण सिंह एयरपोर्ट पर होती है और जयंत प्रियंका के साथ उनके चार्टर प्लेन में दिल्ली लौटते हैं। इसके बाद से कहा जा रहा है कि गठबंधन को लेकर जयंत की कांग्रेस से भी बात हो रही है। ऐसे में अब सवाल सह है कि जब घोषणा मार्च में ही हो गई थी तो इस मुलाकात में इतनी देरी क्यों हुई? क्या सीटों के बंटवारे को लेकर रार है? सीटों के बंटवारे को लेकर मतभेद के कई कारण हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के इस समय 49 विधायक हैं और आरएलडी के एक भी नहीं। ऐसे तें जाहिर सी बात है कि सपा आरएलडी के साथ कम सीटों पर ही समझौते के लिए तैयार होगी। लेकिन दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलनों से तस्वीर बदली है। जाट वोटों पर आरएलडी का दावा हमेशा से मजबूत रहा है और किसान आंदोलनों में जाट समुदाय के किसानों की संख्या बहुत ज्यादा है। केंद्र सरकार की घोषणा कि वे कृषि कानूनों को वापस ले रहे हैं, किसान इसे अपनी जीत की तरह देख रहे हैं। अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश में आरएलडी खुद को मजबूत स्थिति में देख रहा है। ऐसे में जयंत ज्यादा सीटों के पक्ष में तो होंगे ही। अहम सवाल यह भी है कि इस गठबंधन के मायने क्या हैं? पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कम से कम 13 सीटें ऐसी हैं जहां जाट वोटों की अहमियत सबसे ज्यादा है। किसान आंदोलनों में उत्तर प्रदेश से शामिल ज्यादातर किसान इसी समुदाय से हैं जो कथित रूप से भाजपा से नाराज हैं और इनके बीच रालोद की पैठ पहले से ही रही है। अजीत सिंह की करोना से हुई मौत के चलते जयंत के साथ लोगों की सहसनुभूति भी है। ऐसे में सपा को इसका फायदा मिल सकता है। पिछले लोकसभा चुनाव में जयंत और अजीत चौधरी, दोनों को हार मिली थी, लेकिन इस समय माहौल बदला हुआ है। सपा और रालोद ने 2017 का विधानसभा और लोकसभा उपचुनाव साथ मिलकर लड़ा था। दोनों के बीच गठबंधन का उद्देश्य पश्चिमी यूपी की महत्वपूर्णसीटों पर मुस्लिम और जाट वोटों को मजबूत करना है।

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